हवाएं चलें, तो तुम चली आना,
वक्त निकाल के मुझसे मिलने आना।
इंतज़ार में जैसे अब तक गुजारी,
पूनम–अमावस की रातें,
तुझे अपना समझ हर एक पल लुटाया,
मेज़बान मोहब्बत की खैराते,
वैसे ही तुम्हारा इंतज़ार करता रहूंगा,
मिले जो दर्द दुनिया से,
उसे तुम्हारा इश्क़ समझ,
मैं समझदारी के हर पहाड़ से लड़ लूंगा,
तुम अब पास आई,
तो कश के जकड़ लूंगा,
जाने नहीं दूंगा तुम्हें मैं...।
मगर ये सच है,
तुम आओगी ही नहीं,
इन खाली बाहों को,
अपने सीने से लगाओगी ही नहीं,
ये सब मेरे खयालाती उपज हैं,
जिनका सच होना शायद होना ही नहीं है,
फिर भी,
तुमसे फूटके मोहब्बत करता हूं,
मायूस हूं इस एकतरफे सफर के लिए,
जिसमें तुम्हारे संग गुजरता हूं,
तुम एक दिन जुगनू सी,
मेरे किसी रात में चमक जाना,
हवाएं चलें, तो तुम चली आना,
वक्त निकाल के मुझसे मिलने आना।
- ऋषभ भट्ट ( क़िताब : मैं उसको ढूढूंगा अब कहां?)