न जाने कैसी ये बला,
दूर मुझसे ही मैं चला,
चला न जाने कहां?
वो अकल्पित नव जहां,
इक नई दृष्टि प्रदान करती,
दे स्मरण शक्ति नादान करती,
करती आतुर मन में सबेरा,
अद्भुत स्वप्न का ये डेरा।
न जाने कैसा ये संकल्प,
आहुति देता हर विकल्प,
इक नई मार्ग को दर्शाता,
है बूंद को सागर बनाता,
शून्य भी यहां शूल बनके,
पतझड़ में इक फूल बनके,
व्याकुल मिटाने को अंधेरा,
अद्भुत स्वप्न का ये डेरा।
न जाने कैसा ये रथ,
अलबेलों का अलबेला पथ,
पथ ये जाता वहां जो कल है,
कल आता नहीं बस छल है,
छल ये कब तक छलेगा?
द्वन्द अंत तक चलेगा,
अंत भी तो अपना है कहां बसेरा!
अद्भुत स्वप्न का ये डेरा।
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion
सुन्दर पंक्तियों से सुसोभित सुन्दर कविता
ReplyDeleteVery very nice poem
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteBahut badhiya
ReplyDeleteMast kavita
ReplyDeleteBahut sundar pangtiya
ReplyDeletevery nice poetry
ReplyDelete👌👌👌👌👌
ReplyDeleteBahut sundar
ReplyDeleteBahut sundar
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteEk dam mast poem
ReplyDeleteBahut khoob racjna
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