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ढूंढत फिरता श्रवण इक मृदुल स्वर को,
पाता गरल घट से भरे हुए नर को।
प्यास मिठास की लिए फिरता, गिरता
पाने को इक अमृत सी धुन को,
पर क्रोध की रजनी में जीता मनुज
लाये कहां से प्रभा की सगुन को ?
फिर भी प्रणय मधुरता की मधु को
भर हवाओं में मृदुल बना जाती हैं।
रश्मियां आमोद की उर में आनन्द जगाती हैं।
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तृषा अनुराग की लिए उर में, चित बड़ा
चंचल चला उत्थान पर अडिग नव्य पुर में,
हाय! स्वार्थ उत्ताल पर, रत्न के प्रलोभन
से यंत्रणा भरा दृश्य झगझोर जाती,
झगझोर जाती नर रत्न क्षुधा के सुर में।
फिर भी प्रणय, सुदूर जीवन की अवधि से
प्रतिरोधकता,बाधकता की परिधि से ,लिए
अश्व वेग से उड़ान कण-कण में गाती हैं।
रश्मियां आमोद की उर में आनन्द जगाती हैं।
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- Rishabh Bhatt
Very nice poem 👌👌
ReplyDeleteThank you
DeleteMast poetry 👌🤘🤟
ReplyDeleteVery Nice
ReplyDelete👌👌👌✌️
ReplyDeleteFantastic poetry
ReplyDeleteJhakaaas
ReplyDeleteBahut badhiya poem
ReplyDeleteBahut sundar rachna
ReplyDeleteBahut sundar
ReplyDeleteNice poetry
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