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नई रीति या प्राचीन सभ्यता का आधार हुं मैं,
एक परिवर्तन या अन्तर्मन का उद्धार हूं मैं,
सिर्फ एक संकेत या सम्पू्र्ण समाधान हूं मैं,
स्वयं का स्वामी या आत्मा का प्रधान हूं मैं,
नव छवि या प्राचीनता का रूप मनोहर हूं मैं,
आधुनिक विज्ञान या संस्कृति की धरोहर हूं मैं,
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नई पीढ़ी या वैदिक सभ्यता की मूर्ति हूं मैं,
नव मार्ग या विकसित राष्ट्र की पूर्ति हूं मैं,
क्या आधुनिक जगत की कोई शक्ति हूं मैं?
या परम्पराओं में समर्पित भक्ति हूं मैं,
क्या राष्ट्र को उठा सके वो मस्तक हूं मैं?
या संस्कृति को बता सके वो पुस्तक हूं मैं,
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क्या प्राचीनता और परिवर्तन का प्रचार हूं मैं?
या प्रकृति का एक नया अविष्कार हुं मैं,
क्या ग्रंथों में छिपा कोई योग हूं मैं?
या प्रयोगशालाओं में चल रहा प्रयोग हूं मैं,
कर्म के प्रश्न रथ पर खड़ा क्यों मौन हूं मैं?
अस्तित्व क्या है ? मेरा कौन हूं मैं ?
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- Rishabh Bhatt
Jhakas poem 👌👌
ReplyDeleteअति उत्तम कविता 👌👌👌👌👌👌👌👌👌
ReplyDeletebahut sunder rachana👌👌
ReplyDeleteBeautiful poem
ReplyDeleteNice
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