वो एक लड़का और एक लड़की
आज लोगों के बीच घिरे खड़े थे,
ठीक उसी तरह
जैसे कोई मुजरिम खड़ा होता है
अपने जुर्म की आख़िरी सुनवाई में।
चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी,
मगर आँखों में वो थकावट थी
जो भागते-भागते
सिर्फ़ मोहब्बत करने वालों को आती है।
कंधे से कंधा मिला हुआ नहीं था,
हाथों में हथकड़ी नहीं थी,
पर दिल—
वो आज भी एक-दूसरे से बँधे हुए थे।
भीड़ थी…
हज़ारों चेहरों की भीड़,
जो उन्हें घूर रही थी
जैसे वो कोई तमाशा हों,
जैसे इश्क़ किसी ज़ुर्म की तहरीर हो
और उनके नाम
एफ़आईआर में दर्ज किए जाने हों।
किसी ने कहा —
“ये वही हैं जो छुप-छुप के मिलते थे…
जो हमारे रिवाज़ों को ठुकरा कर
इश्क़ की बातें किया करते थे।“
किसी ने चीख़ के कहा —
“इनकी मोहब्बत ने हमारे बच्चों को बिगाड़ा है!”
और कोई बोला —
“ये तो उसी दिन से गुनहगार हैं,
जब इन्होंने जात, मज़हब, सरहद
सब कुछ पार कर
एक-दूसरे का हाथ थाम लिया था।“
वो दोनों चुपचाप खड़े थे,
ना ज़ुबान खोली,
ना सफाई दी।
क्योंकि सफ़ाई वहीं दी जाती है
जहाँ सुनने वाले इंसाफ़ के काबिल हों।
वो अब भी एक-दूसरे की आँखों में
वो पहली मुलाक़ात तलाश रहे थे—
जहाँ कोई भीड़ नहीं थी,
सिर्फ़ दो दिल थे
जो धीरे-धीरे पास आए थे।
लड़के ने अपना सिर उठाया
और नज़रें सीधे भीड़ से मिलाईं।
फिर बोला—
आवाज़ में काँपन नहीं था,
बस एक थक चुका यक़ीन था।
“हमने कुछ नहीं छीना,
किसी से कुछ नहीं लिया।
हमने बस एक-दूसरे को चाहा,
उसी तरह
जैसे सती ने शिव को चाहा था।
क्या उनकी मोहब्बत
किसी नियम की मोहताज़ थी?
जब सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध
अग्नि को अपनाया,
क्या शिव ने उन्हें ठुकराया था?
नहीं…
उनका प्रेम तो तपस्या था,
शाश्वत, निर्विकारी।“
भीड़ में कुछ कान हिले,
पर आँखें अब भी पत्थर बनी रहीं।
अब लड़की आगे बढ़ी,
हल्के से पल्लू सँभाला
और धीमे मगर स्थिर स्वर में बोली—
“अगर प्रेम जुर्म है,
तो फिर बताइए…
क्या राधा और कृष्ण का नाम
मंदिरों में एक साथ नहीं लिया जाता?
उनका मिलन तो कभी देह का नहीं था,
उनका मिलन तो आत्मा का संगम था।
तो फिर हमने अगर
एक-दूसरे की रूह को अपना माना,
तो कहाँ गलती की हमने?”
लड़का फिर बोला—
“हमने वक़्त से छुपकर मोहब्बत की,
क्योंकि वक़्त हमें देखने नहीं देता था।
हमने दुनिया से भागकर
हर मोड़ पर एक-दूसरे को पकड़ा था।
कभी बस स्टॉप,
कभी पार्क की बेंच,
कभी छत की परछाइयाँ,
कभी वाट्सएप की ख़ामोशियाँ…
हर जगह
हम खुद को बचाते रहे।
मगर आज पकड़े गए…
तो सुनो,
अब सिर्फ़ हम नहीं पूछेंगे,
आज हमें भी जवाब चाहिए।”
अब लड़की की आवाज़ काँपी नहीं—
वो एक लहर बन गई थी,
जिसमें सारा समाज भीगने को मजबूर था।
किताब : नींद मेरी ख़्वाब तेरे
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion