मैं कोई गीत नहीं,
कोई छवि नहीं,
ना कोई प्रतीक —
मैं एक साधना हूँ,
जिसे केवल वही जान सकता है
जो स्वयं में उतर कर
प्रेम को समझता हो।
मुझे रास नहीं चाहिए,
मुझे सच्चा राग चाहिए —
ऐसा राग,
जो मूक हो,
जो धड़कनों से निकले,
जो आपकी जटाओं में बहे
और मेरी चूड़ियों में गूंजे।
मैं चाहती हूँ
जब भी मैं थक जाऊँ,
आप मौन होकर
मेरे पास बैठें —
कुछ भी न कहें,
बस अपनी उपस्थिति से
मेरे टूटे हिस्सों को जोड़ दें।
क्योंकि आप देव हैं,
और मैं भी कोई अबला नहीं —
मैं शक्ति हूँ,
जिसे आप स्वीकार करें,
ना कि सहारा दें।
प्रेम को बोझ नहीं बनाना चाहती,
ना चाहती हूँ
कि आप मुझे बचाएं,
बल्कि आप साथ चलें,
सावधानी से नहीं —
विश्वास से।
मुझे वो प्रेम चाहिए,
जो एकांत की तरह सच्चा हो,
जहाँ मेरी तन्हाई भी
आपके मौन में पिघल जाए।
जहाँ आप मुझे
कभी बदलने का प्रयत्न न करें,
बल्कि
मुझे मेरी सम्पूर्णता में स्वीकार करें —
जैसे आप स्वयं को करते हैं।
जब आप क्रोधित हों,
तो मैं आपके भीतर
शांति की नर्म छाया बन जाऊँ,
जब मैं टूटूँ,
तो आप मेरे भीतर
पर्वत की तरह अडिग बन जाएं।
मैं कोई परछाईं नहीं बनना चाहती,
जो आपके पीछे-पीछे चले,
बल्कि
मैं आपका प्रतिबिंब बनना चाहती हूँ,
जो साथ-साथ चले।
आपकी जटाओं में जो गंगा है,
वो मेरी आँखों की धारा से न मिले,
बल्कि मेरी मुस्कान से —
जो हर उस क्षण में खिले
जब आप मुझे
अपने मौन में समाहित करते हैं।
मैं एक स्त्री हूँ —
ना देवी, ना दासी, ना परछाई।
मैं वो शक्ति हूँ
जो आपके साथ खड़ी है —
कभी पीछे नहीं।
आपका रुद्र रूप
मुझे डराता नहीं,
क्योंकि मैं जानती हूँ
कि हर तांडव के पीछे
आपकी आत्मा में
एक निर्मल प्रेम है
जो संसार को पुनः रच सकता है।
और मैं उस सृजन में सहभागी बनना चाहती हूँ।
जहाँ आप
सामने हों,
और मैं
आपकी आँखों में
अपना प्रतिबिंब देख सकूँ —
बिना संकोच, बिना भय।
मुझे वो रिश्ता चाहिए,
जहाँ हर मौन
गीत बन जाए,
हर क्षण
अनंत लगे,
और हर प्रेम
मुक्ति जैसा हो।
जहाँ जब आप
ध्यान में हों,
तो मेरा नाम
आपकी सांसों में हो।
जहाँ जब मैं
साँझ के दीप जलाऊँ,
तो आप
उस लौ में बस जाएं।
जब कभी आप मुझे देखें,
तो मैं चाहूँ
आप सिर्फ मेरा चेहरा न देखें —
बल्कि मेरी आत्मा में उतरें,
मेरे उस हिस्से को जानें
जो कभी किसी से साझा नहीं किया।
मुझे आपके स्पर्श से पहले
आपकी नज़रों का आदर चाहिए,
जहाँ मैं केवल देह न बनूँ,
बल्कि
आपके मौन में बहती हुई
एक साधना बन जाऊँ।
जब आप ध्यान में बैठें,
और संपूर्ण जगत विस्मृत कर दें,
तो मैं चाहूँ
आपका एक स्मरण बन जाऊँ —
ना बाधा,
बल्कि आपकी शांति का हिस्सा।
क्योंकि प्रेम केवल साथ चलने का नाम नहीं,
प्रेम है —
एक-दूसरे के भीतर उतरने की कला,
जहाँ आप मुझे
मेरे हर रूप में स्वीकार करें —
मेरा मौन, मेरी अस्थिरता, मेरा डर,
यहाँ तक कि मेरा बिखराव भी।
किताब : नींद मेरी ख़्वाब तेरे
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion