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बादलों से एक ख़ूबसूरत चीज लाया हूं, तेरे लिए
उसमें इंद्रधनुष के रंगों को मिलाया हूं, तेरे लिए
अंगड़ाईयों से उठकर निग़ाहों ने गोलियां चलाई हैं
घायलों की बस्ती में अपना नाम लिखाया हूं, तेरे लिए
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अब हंसता तो नहीं, पर रोना भी छोड़ चुका हूं
दिल के हर रास्ते को तुम्हारी तरफ मोड़ चुका हूं
ज़रा ठहर जाओ ऐ रंग ! यूं न तुम धुलो
जिंदगी के रंगीनियों को किसी हथौड़े से तोड़ चुका हूं
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तुम कोई मौसम हो जो बहार बनके आती हो
खुद तो सुलझी हुई पर मुझे उलझाती हो
क्या करूं ? मैं तुम्हें हर बार रंगना चाहता हूं
पर तुम ही गालों पे अपनी होंठों का निशान छोड़ जाती हो
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मुसीबत तो है, जो तुमसे अकेले में मिलना पड़ता है
कोई देख न ले ये सोचकर सम्हलना पड़ता है
रंगों में डुबाकर एक हसीन शाम लाई आज तुम्हें
तुम किसी और को रंग लगाती हो, तो दिल को जलना पड़ता है
- Rishabh Bhatt