तूं नहीं तो ये रुत... ये हवा इन सबका मैं क्या करूं
आंधियां इस क़दर चलीं कि हर आसिया लुट गया
बस बचीं तुम्हारी यादें.... बोलो! इनका मैं क्या करूं....
दिल ने मेरे तेरे दिल से कहा
इश्क शायद वही जो तुमसे हुआ है बेइंतहा
मेरा दिल तुमको पुकारे आजा!
दूर तुमसे रहके मैं क्या करूं....
मेरी यादों से अब तक तू न गई
आंख में तेरी बारिशें मौजूद हैं
ख्यालों को मैं अपने क़िस्से साझा करूं
तेरे बिना दिल भी मायूस है
हमनवा कुछ तो बता तेरे बिना मैं क्या करूं...
.तेरे करम की दिल को यूं चाहत है
तूं रुह भी है और राहत है
तेरी कमी का दिल में मलाल छाए
बेखयाली में भी यूं तेरा खयाल आए
अब गुजरना एक शाम से ज्यादा मेरी उम्र नहीं,
मैं क्या करूं....
ख्वाब जैसी कोई ख़्वाब थी जिंदगी
नींद टूटी तो समझ ये आया हमें
महफ़िलों में नाम तेरे और मेरे महफूज हैं
दिल में ढूंढा तो दिल में ही पाया तुम्हें
शाम ये जश्न की तेरी बातें करूं या
मुरादों में तुझपे जहां वार दूं... बोलो मैं क्या करूं....
तूने समझा ही नहीं मैंने क्या कुछ कहा
चांद को देखकर मैं आंखें मूंदता रहा
अब निकलूं तो तेरी गली की सुबह बनकर
वरना खामोशियों में ही दम तोड़ दूं
मेरी जान ए जहां तूं जरा मुस्कुरा
सूना हर शमां जाऊं मैं कहां... मैं क्या करूं....
- Rishabh Bhatt