
For English Click Here
"What is Perfect Crime ?" ये प्रश्न सुनने में जितना अजीब है इसका उत्तर उतना ही अर्थपूर्ण है। यह एक प्रश्न इस पूरे संकलन के किसी मूल के समान है, जिसके संबंध में कुछ लोगो के विचार इस प्रकार हैं- 'Perfect Crime वो हो सकता है जब crime होने का कोई सबूत न मिले..' अब इससे थोड़ा और आगे देखें तो 'Perfect Crime वो हो सकता है कि crime होने का किसी पता ही न चले..', लेकिन इससे भी और आगे देखें तो सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि 'Crime होने के बाद वो किसी को crime ही न लगे..'। शायद.. यही हमारे साथ भी हुआ है। इस बात को समझने से पहले मैक्समूलर द्वारा बैराम मालबारी को लिखे इस पत्र को समझते हैं -
"तुम वेद को एक प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथ के रूप में स्वीकार करो, जिसमें कि एक प्राचीन और सीधे-सादे चरित्र वाली जाति के लोगों के विचारों का वर्णन है। तब तुम इसकी प्रशंसा कर सकोगे और इसमे से कुछ को स्वीकार करने के योग्य हो सकोगे, विशेषकर आज के युग में भी उपनिषदों की शिक्षाओं को..., लेकिन तुम इसमे ढूंढो भाप के इंजन और बिजली, यूरोपीय दर्शन और नैतिकता, और तुम इसके सच्चे स्वरूप को इससे अलग कर दो। तुम इसके वास्तविक मूल्यों को नष्ट कर दो और तुम इसकी ऐतिहासिक निरंतरता को नष्ट-भ्रष्ट कर दो जो कि वर्तमान को इसके अतीत से जोड़ती चली आ रही है...( 29/01/1882 )"।

इस पत्र का प्रकाशन मैक्समूलर की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी जाॅर्जिया मैक्समूलर के द्वारा किया गया। उन्होंने ऐसे और भी पत्रों का प्रकाशन किया जिससे ब्रिटिस सत्ता की ईसाईयत शिक्षा और भारतीय ग्रंथों के साथ हुई छेड़छाड़ साफ झलकती है। अनुवाद के नाम पर ग्रंथों के मूल को उनके अंग्रेजी अर्थों में बदल दिया गया, जिसका प्रमाण ऋगवेद के इस श्लोक से मिलता है "युञ्जन्ति व्रन्घं चरन्तं परितस्स्थुषः रोचन्ते राचनादिवि (ऋ. १.६.१)", इस श्लोक में 'व्रन्ध' का अर्थ अंग्रेजी अनुवाद में घोड़ा लिया गया है जबकि इसका वास्तविक अर्थ परमात्मा से है। यह न केवल भारतीय ग्रंथों को नीचा दिखाने के लिए बल्की उनके प्रभाव को उनके मूल से अलग करने के लिए किया गया है। क्योंकि किसी भी राष्ट्र पर पूर्णत: तब तक शासन नहीं किया जा सकता जब तक वहाँ की संस्कृति वहाँ के लोगों में जीवित है। ये बात ब्रिटिस सरकार के लिए एक चिंता का विषय था जो मैक्समूलर के द्वारा सेक्रेटरी ऑफ स्टेटसड्यूक ऑफ आर्गायल को लिखे इस पत्र में साफ दिखाई देता है -
"भारत एक बार जीता जा चुका है। लेकिन भारत को दुबारा जीता जाना चाहिये और यह दूसरी जीत ईसाई धर्म शिक्षा के माध्यम से होनी चाहिये। हाल में शिक्षा के लिये काफी किया जा चुका है लेकिन यह धनराशि दुगुनी या चौगुनी कर दी जाये तो ऐसा करना मुश्किल न होगा। भारत की ईसाईयत शायद हमारी उन्नीसवीं सदी जैसी ईसाईयत भले ही न हो लेकिन भारत का प्राचीन धर्म यहाँ डूब चुका है, फिर भी यदि यहाँ इसाईयत नहीं फैलती है तो इसमें दोष किसका होगा ? ( 16/12/1868 )"
दुर्भाग्य पूर्ण है कि भारत के आधुनिक शिक्षा का श्रेय उस मैकाले को दिया जाता है जिसने यूरोप के 'एक लाइब्रेरी के एक किताब की एक लाइन को भारत के अमूल्य धरोहर से मूल्यवान बताया'। साथ ही "आर्यन सिद्धान्त" जैसे मिथ्याजनक तथ्यों को जन्म देने वाले मैक्समूलर के एजुकेशन डिजाइन को भारतीय प्राचीन इतिहास का आधार बनाया गया। ये ब्रिटिश हुकूमत के लिए भारतीय एजुकेशन सिस्टम पर एक जीत के समान थी, जो आजादी के बाद भी हम पर शासन कर रही है। Prefect Crime की इससे बेहतर और सफल परिभाषा शायद ही कोई हो, जो हमारे इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में लिख दी गई है और हम उसे देख भी नहीं सकतें...। धन्यवाद!
- Rishabh Bhatt