महारानी पद्मिनी की जौहर गाथा 🔥 : Season–1
रणधीरों की गर्जना : भाग-2 ⚔️
जब रणभूमि की गरज और रणधीरों की तलवारें एक साथ उठती हैं, तो आकाश भी कांप उठता है।
यह हिस्सा उस समय का है जब अतिथि रूप में आया खिलजी अपनी चाल और छल से चित्तौड़ पर कब्ज़ा करना चाहता था। लेकिन रानी पद्मिनी और रावल गढ़ के वीरों ने धैर्य, साहस और रणनीति के साथ उसका सामना किया।
हर पंक्ति में है रणभूमि की धधकती आग, हर शब्द में झलकता है वीरों का पराक्रम और नारी की बुद्धि। यह गाथा केवल युद्ध की नहीं — बल्कि सम्मान, वीरता और न्याय की अमर आवाज़ है। "जन जन की लहू से शोणित करो, रणभूमि में विजय के जय बोल!" ⚔️🔥
पेश है...
गज गर्जन सा संबोधन था,रावल गढ़ के रणधीरों का,
दामिनी सी चम चम करती,असि हाथ लिए महिवीरों का,
एक एक रावल योद्धा खड़ा हुआ,बन पर्वत राज हिमालय था,
गढ़ का कोना कोना गृह था,तीर्थ वहीं देवालय था,
चकाचौंध आंखों में अरि की,निकले रश्मि कृपाणों से,
कपट लिए निकला उर में,विजय मिले न बाणों से,
अतिथि सत्कार चाहता हूं,ये हांथ नहीं रण प्यासी,
अरूण प्रिया का व्याख्यान सुना था,हूं दर्शन का अभिलाषी,
अतिथि रूप में खिलजी आया,रीति ने भुज बांध लिया,
एक किरण महारानी का फिर,था दर्पण ने पार किया,
जाने से पहले ही एक वांछा,अब मिले मुझे भी अवसर,
छल की जंजीरों ने जकड़ा भूपति को,लिए चला अपने कर,
फिर एक संदेशा भेजा गढ़ को,कायरता पर अभिमान किए,
मांग पद्मिनी की करता,तभी रतन के प्राण जिए,
चांद देखती वातायन से रानी,क्या कुल की मै एक बला हूं,
सुन्दरता पति पर भारी,क्या सच में मै अबला हूं,
हाय विधाता! पथ दिखलाओ,मै भी सावित्री बन जाऊं,
अरि के कर को खंडित कर,अपने पति को मै लाऊं,
फिर बनी भवानी चली पद्मिनी,ले घूंघट दरबार जहां पर,
रण गर्जन में देरी क्यों,है रणधीरों की तलवार कहां पर,
एक संदेशा भेजो अरि को,स्वीकार करे तो मै आऊं,
अपने साथ सात सौ डोली,सहचरियों की भी लाऊं,
सज्जित हो डोली वीरों से,हर डोली में भरी कटारी हो,
गोरा बादल की निगरानी में,सोभित डारी डारी हो,
भू पाट पाट डोली पहुंची,बप्पा रावल की टोली पहुंची,
काट काट अरि धड़ को,जय काल कपाली बोली पहुंची,
बोली शोणित मय तलवारों की,बैरी दल को शोणित युक्त किया,
रावल गढ़ के रणधीरों ने,रावल पति को मुक्त किया,
तनन मनन हो बैरी बोला,झुलस झुलस कर मुख खोला,
अपमानी ज्वाला में जलता,तूफानी झोंको से बोला,
आरव तोपों से बोला,बरछी भालों की नोकों से बोला,
जन जन की लहु बहाने को,संगर की बैरी दल डोला,
बोला अरि लहुलुहान करो जग,ले हय गज उत्थान करो अब,
जन जन पर टूट पड़ो तुम,शोणित से स्नान करो अब।
आगे जारी हैं..
आप इसे अमर उजाला काव्य पर भी पढ़ सकते हैं.. Read Now
🌿 Written by Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion
Epic Continuations 🔥
Rishabh Bhatt
भारतवर्ष…
जो युगों से आक्रांताओं की लालसा का लक्ष्य रहा, फिर भी हर आघात के बाद और अधिक उज्ज्वल हुआ।
13वीं शताब्दी की वही विभीषिका थी जब अलाउद्दीन खिलजी की महत्वाकांक्षा चित्तौड़ की मर्यादा पर पंजे गाड़ने को उतावली थी। पर इतिहास गवाह है — जहाँ आक्रमणकारी तलवारें बढ़ीं, वहीं महारानी पद्मिनी जैसी देवियों ने अग्नि को वरण कर स्त्री–शक्ति की परिभाषा बदल दी।
चित्तौड़, जो उस समय वीरता, प्रेम और त्याग का प्रतीक था — वहीं जली वह जौहर ज्वाला, जिसने यह सिद्ध किया कि भारतीय नारी को जीता नहीं जा सकता, क्योंकि वह देह नहीं, आत्मा से स्वतंत्र होती है। “महारानी पद्मिनी की जौहर गाथा” सिर्फ़ इतिहास नहीं, बल्कि उस अग्निस्नान का काव्य है जहाँ राख नहीं, अमरत्व जन्मा था।
🔥 ये खण्डकाव्य समर्पित है उस जौहर ज्वाला को — जो आज भी भारत की आन, बान और मर्यादा की लौ बनकर जल रही है।

Very nice historical poem
ReplyDeleteThis poem say many things about rani padmavati nice paem👌🤟
ReplyDeleteI know many things about padmavati by this poem good poem
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