अस्वीकरण
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तीर्थराज चित्तौड़ शिखा बन,लौ में खोई - खोई थी,
कांप उठी थी अवनी थर थर,बरखा बनकर रोई थी,
असि म्यानो से दूर चले थे,पूरा गढ़ पानी - पानी था,
जौहर ज्वाला की चिंगारी से,धधक उठा राजधानी था,
धधक धधक कर रख हुई,लिप्सा उस अभिमानी की,
आरम्भ व्यथा वो होती है,जय बोल महा बलिदानी की।
दर्पण ले वो चांद निहारे,देख छवि महारानी की,
देख प्रभा को छिपे सितारे,चित्तौड़ धरा के रानी की,
बनी कठोर पुष्प पंखुणी,पद की कोमलता के आगे,
पीने को मधु मुख की, रात - रात भर कोयल जागे,
पतिव्रता संज्ञा की शोभा,मर्यादा की श्रृंगार पद्मिनी,
नारी जाति की गौरव थी,रतन सिंह की तलवार पद्मिनी,
महराज रतन भी तीर्थराज के,देवराज से रूपवान थे,
तेज तुरंग की लिए गगन में,हर उपमा के उपमान थे,
आखेट खेलने वन को जाते,कांध मिलाकर सिंह रतन से,
वहीं पद्मिनी कवच बनी थीं,अन्तर मन में बड़े जतन से,
बल चट्टानों का भुज में था,बिजली से तलवार लिए,
वहीं पद्मिनी ढाल बनीं थी,किरणों की अवतार लिए,
एक रात्रि के विचित्र स्वपन ने,महराज रतन का नींद उड़ाया,
दुर्ग की देवी लहू मांगती,महा - प्रलय भू पर आया,
अगले दिन दिनकर ने जैसे,चित्तौड़ धरा से मुख फेरा,
उठा बवंडर तिमिर गगन में,घेरा खिलजी दल का डेरा,
दल दानव का टूटा महि पर,ले ले खूनी करवालों को,
डग - मग डग - मग तरु डोले,देख हाथ अरि भालों को,
अरि रूप लालची सोच रहा,चित्तौड़ी सेना का महराज बने,
राज गद्दी की शोभा बन,महारानी सिर का ताज बने,
कोलाहल उर में अरि की,स्वर पद्मिनी वाणी में,
क्षण ज्वाला इक धधक उठी,रावल गढ़ के प्राणी प्राणी में,
क्षण रतन सिंह ने घोष किया,अवनी वीरों का रक्त अमर होगा,
खिलजी के दुराचार का उत्तर,अब तो महा - समर होगा।
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- Rishabh Bhatt
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Thanks for giving historical poems
ReplyDeleteThis poetry is very nice on history of padmavati
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