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कर जीवन परिणीत हो सर्वस्व त्याग युक्त,
राग द्वेश मित्र शत्रु मिथ्या जड़ बंधन से मुक्ति।
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चक्रव्यूह मोह का उत्पीड़न का है राज्य,
ज्ञान का व्याधान करे नीरवता भाज्य।
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गतिरोधक अनुभव रस का सम्मोहन कारी हाला जो,
नहि औषधि रोग की प्रेम शूल की माला वो।
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पावक है रूपसी प्रज्ञा का ये काल,
उत्कर्ष का अंकुश ये भ्रान्ति सम्मोहन जाल।
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सहचर एक विवेक बैरी सा ये विश्वानर,
बन अन्तर्पथ निर्देशक संसृति कारा स्वाहा कर।
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तज माया सर्व सत्य अंत उत्पत्ति का,
अमर आत्मा,बोध कर जीवनसुधा सम्पत्ति का।
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- Rishabh Bhatt
बहुत सुन्दर काव्य
ReplyDeleteVery very nice
ReplyDeleteNice 👌
ReplyDeleteबहुत अच्छा कविता
ReplyDeleteBeautiful kavita
ReplyDeleteBahut achcha
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