हाय साहसी!
पग कांटों से भय करते हैं,
सह पत्थर की ठोकर मेंहदी रंग उगलते हैं,
कटु नोकों से पुष्पें भी तो हार बने,
अग्नी की लपटों में बर्तन भी आकार धरे,
प्रश्नों के बेड़े में मुख पर कैसा कौतूहल?
व्रत, तप कहां, कहां लीन है बुद्धि बल?
कहां बहु भुज नश-नश के आग गये?
नभ गर्जन सा कहां मुख राग गये?
कष्ट नहीं हो मौन या दुर्बल सा हाल हुआ,
भेदा हिय को जो शब्दों का आकाल हुआ,
कष्ट नहीं धुंधलाई आंखें या निश्चय का हास्र हुआ,
भेदा हिय को जो अनल रुधिर यह भाप हुआ,
पूछो हिय से घोर घटा क्यों मनु अम्बर में?
नयन भरें जल या नयन समन्दर में!
हाय तेजश्वी!
पथ की काली से डरता है,
नव किरणें ले प्रात: सूर्य निकलता है,
निकाला लौ चिराग भी जिसका काल बने,
दिनकर को भी अब निशा छले!
संकल्प श्रेष्ठ!
सहन नहीं यह शोक विकल,
मन: स्थिति दुर्बल अदृश्य मुख भाव सकल।
स्मरण निज जप, तप, व्रत, गुण रस भय
जय जीता नहि पालो यह अपयश।
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion
बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteभय पर जय कविताओं के संग 👌👌👌👌
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteBhut sundar kavita
ReplyDelete👌👌👌👌👌👌👌👌
ReplyDeleteFantastic
ReplyDeleteJhakaaas poem
ReplyDeleteVery nice poem
ReplyDeleteBeautiful
ReplyDeleteJai ho
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