टूटे हुए ख़्वाब और टूटी हुई बांध,
दोनों तबाही जैसी लगती हैं,
जैसे उम्मीदों के कोरे कागज पर,
किसी ने स्याही की बोतल उड़ेल दिया हो,
जैसे आसमान,
चांद और तारों से खाली हो गई हो,
और होंठो की नमी को,
किसी बंजर जमीं की नज़र लग गई हो,
मेरी भी हालत कुछ यूं ही हुई थी,
उसके जाने के बाद।
न खाने का होश बचा था,
न ही नहाने का,
फुरसत इतनी भी नहीं थी,
कि अपने दर्द को सिरहाने रख,
खुशियों से पल दो पल बात कर सकूं,
अपने खुद के दिल पर हाथ रख सकूं,
और खुद से इतना बोल सकूं,
‘कि मेरा दिल अभी भी मेरे पास है,
इसे मुझसे कोई नहीं छीन सकता।’
उसका जाना,
बस एक ख्वाब के चले जाना जितना है,
ये बात मैं खुद को,
समझा नहीं पा रहा था,
क्योंकि मैं खुद ये मानने को तैयार नहीं था,
कि वो मुझसे दूर जा चुकी थीं,
और अब कभी वापस नहीं आने वाली थी,
हां, आज भी उसके साथ गुजारे पल,
किसी आदत के जैसे,
मेरी हरकतों में समाएं हुए हैं,
उतनी ही उत्सुकता से अब भी–
वॉट्सएप खोलता हूं,
जैसे उसके मैसेजेस आने पर खोलता था,
और उससे बातों में खो जाता था,
मगर अब चाहें जितने भी,
गुड मॉर्निंग के मैसेजेस क्यूं न आ जाएं,
उसके एक मैसेज की कमी हर वक्त है,
ये कमी इस हद तक है,
जैसे बिना रौशनी के जुगनू,
और बिना किसी देखने वाले के कोई आईना,
काश अपनी तस्वीर में मैं उसे देख पाता,
हवाओं में उसे छू पाता,
बारिशों में भीग उसे खुद में उतार पाता,
काश इन खामोशियों को उसकी आवाज मिल जाती,
जिसे मैं हर वक्त सुन पाता,
और काश वो गई ही न होती,
वो गई ही न होती।
ये सारी बातें तबाही के बाद,
किसी उजड़ी बस्ती के जैसी बस रह गई हैं,
जहां बिखरा हुआ तो सब कुछ है,
मगर एकजुट केवल उम्मीद है।
🌿 Written by Rishabh Bhatt 🌿
(Author of Mera Pahla Junu Ishq Aakhri, Unsaid Yet Felt, Sindhpati Dahir 712 AD and more books, published worldwide)
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💼 Engineer by profession, Author by passion
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