Hii पापा!



Hii पापा!


कौन?


मुझे नहीं पहचाना? मैं आपकी बेटी।


सॉरी.. मेरी कोई बेटी नहीं...


मैं आपकी ही बेटी हूं,


ऐसा नहीं हो सकता, मैंने अभी तक सादी नहीं की। न ही किसी इंसा से वो नजदीकियां हैं।


लेकिन ये नजदीकियां तो थी न कभी किसी से? मुझे भी जान वहीं से मिली हैं।


पागल सी बातें करना बंद करो और बताओ कौन हो तुम?


मैं सच कह रही हूं, मैं आपकी बेटी हूं। जब कुछ वक्त पहले आप मोहब्बत में किसी से काफी करीब थे। वो जब उसका होना ही आपकी सुबह औ शाम थी। मुझे भी ज़िंदगी की जान वहीं से मिली...


वो मेरी इश्क़ भले ही थी। मगर बंदिशों ने कभी हमें एक होने न दिया। कम शब्दों में बयां करूं तो हमारे बीच इतनी करीबिया न थीं कि कोई जान पनप पाए।


आप भूल रहे हैं पाप। आपने और मां ने एक ख्वाब बसाया था। हमारी एक फैमिली थी। हम कितने खुश थे। फिर शायद किसी की नज़र लग गई और मां और आपके बीच दूरियां बन गईं।


हां! वो बस एक ख़्वाब था। लेकिन तुम जिस हक़ीक़त की बात कर रही हो वो मुमकिन नहीं है। तुम मेरी बेटी नहीं हो।


अगर वो बस एक ख़्वाब था तो अब तक आप उस रिश्ते से निकल क्यों नहीं पाए? आपका दिल अतीत को याद कर आज भी क्यूं रोता है? क्यूं दे रहे हैं आप खुद को अभी तक तकलीफ? क्यों नहीं मान लेते जा चुकी हैं वो और कभी वापस नहीं आने वाली?


ये मेरी पर्सनल बातें हैं। तुम्हें कोई हक नहीं इनपर बात करने की...


मैं अपना हक ही तो मांगने आई हूं पापा। मगर अफ़सोस मां देने से रहीं और आप भी तैयार नहीं...


किस हक की बात कर रही हो तुम? मैं पहले भी बोला चुका, मैं तुम्हारा पापा नहीं हूं और वो लड़की.. उसे दूर रखो, उसके बारे में मैं कोई बात नहीं करना चाहता।


ठीक है। मैं उनका नाम नहीं लूंगी। रही बात मेरे हक की तो मेरी कोई हक़ीक़त नहीं मैं बस एक ख़्वाब हूं। जो आपने किसी के साथ कुछ वक्त पहले देखा था। मैं वहीं से आई हूं और चली भी जाऊंगी। मगर ये बात याद रखिए ख़्वाबों में भी जान होती हैं। जब भी कोई उन्हें जीता है तो उन ख़्वाबों पर उसकी सांसों का हक हो जाता है। आपने भी एक ख्वाब को जान दिया था और मुझमें सांसे तभी आईं। उसी वक्त तय हो गया था कि भविष्य में मैं आपकी बेटी बनकर आऊंगी। फिर अचानक से आप और मां अलग हो गए। मैं जिनसे अपने आने वाली थी उन्होंने किसी और के संग अपनी दुनिया बस की और नया परिवार बना लिया। बची मैं जो भटकती रही उन ख़्वाबों के साथ जिन्हें आपने कभी मरने नहीं दिया।


क्या ख़्वाबों की इतनी बड़ी हकीकत है? और क्या तुम यूं ही सारी उम्र मेरे साथ भटकने वाली हो? 


हां, इंसान के हर ख्वाब में ज़िंदगी होती है। और मेरा भटकना यूं ही तबतक जारी रहेगा जबतक आप अपने अतीत की यादों से मुझे आज़ाद नहीं कर देतें।


मुझे अब भी मेरी आंखों पे और तुम्हारी बातों पे भरोसा नहीं। फिर भी मैं तुम्हारी आज़ादी के लिए वो जरूर करूंगा जो कर सकता हूं।


मेरी आज़ादी का बस एक ही रास्ता है, आपको उन्हें भूलना होगा जिनसे आप कभी मोहब्बत किया करते थें। आपके अंदर दर्द का जो सैलाब है उसे मैं आपकी बेटी होने की वजह से बख़ूबी महसूस कर सकती हूं। आपको इस दर्द से आज़ादी पानी होगी। सीधी शब्दों में कहूं तो आप अपने आपको मूव ऑन करके मुझे आजादी दे सकते हैं।


ये बात कहने में जितनी आसान है उतनी ही मुश्किल भी है। अगर तुम पिछले कुछ समय से मेरे साथ रही हो तो तुम्हें मालूम होगा मैंने हज़ारों कोशिशें किए उसे भूलने की लेकिन मेरे हाथ नाकामी ही लगी।


तो फिर मैं भी आपके इन यादों के साथ भटकती रहूंगी। क्या आप देख सकेंगे मुझे इस तरह ?


नहीं, न जाने क्यूँ पर तुमसे मुझे कोई रिश्ता महसूस हो रहा है। किसी के जाने का गम है लेकिन इस वजह से मैं तुम्हें खुद से बांधे नहीं रख सकता। जबकि तुम्हारी कोई गलती नहीं है ये सारे ख्वाब हमारे थें जो पूरे न हो सकें।


इन अधूरे ख्वाबों को आप किसी और के साथ जीकर देखिए। एक नई मोहब्बत का आगाज़ करके आप अपने अतीत से आगे बढ़ सकते हैं। आपने ये जो खुद को बंदिशों में बंद रखा है उसे मोहब्बत की नई ताकत दीजिए। जब एक बार फिर से आप अपनी इस मोहब्बत के साथ उन ख़्वाबों को ज़िंदा कर हकीकत की ओर बढ़ेंगे तब मिलेगी मुझे आजादी, एक बार फिर मेरा जन्म होगा और मैं इस दुनिया में आपकी बेटी बनकर आऊंगी।


(किताब ; कसमें भी दूं तो क्या तुझे?)


🌸 Written by Rishabh Bhatt 🌸

(Author of Mera Pahla Junu Ishq Aakhri, Unsaid Yet Felt, Sindhpati Dahir 712 AD and more books, published worldwide)


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💼 Engineer by profession, Author by passion


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