तुझे ताउम्र प्यार करता



चौदा वरस सिया बन,

तेरा इंतज़ार करता,

तू चाहती तो मैं भी,

तुझे ताउम्र प्यार करता।


आवक बन न रहती,

यूं लफ्ज़ मुख को फेरे,

तारों के जलते दियों में,

मिट जाती हर अंधेरे,


कस्ती की जर्जर बेड़ी,

हाथो को मेरे बांधे,

तुझको गले लगाने को,

साहिल नज़र ये साधे,


तेरी झलक पाने को एक,

गलियों से हर दिन गुजरता,

तू चाहती तो मैं भी,

तुझे ताउम्र प्यार करता।


खो खो कुटुम्ब में खेलने,

चिड़ियों को झुंड आ जाती,

खोले दिलों के पन्ने,

दास्तां ए दिल सुनाती,


ये रेस ही अधूरा सा,

अरसे हुए, कोई न दौड़ा,

महफिलें जमी थी एक दिन,

बाज़ी किसी ने था थोड़ा,

मैं द्रोपदी बना तुमको,

दांव पर कभी न धरता,

तू चाहती तो मैं भी,

तुझे ताउम्र प्यार करता।


कोई कर लगा दो मुझेप,

जो तुझको देने आया,

इसी बहाने से ही,

तेरी झलक एक पाऊं,


मैं बारिशों का महीना,

तू बाग मेरी खिली हुई,

हल्की हल्की हो जा करीब,

हों सावन में बूंदे घुली हुई,


चल चल कदम हवाओं संग,

हर सांस में एतबार करता,

तू चाहती तो मैं भी,

तुझे ताउम्र प्यार करता।


रजवाड़ों की सुनी चौखट है,

तेरे कदम की नुमाइश में,

जैसे चांद भटक रहा हो,

मधुर चांदनी की ख्वाहिश में,


तू सब जान लेती है,

बिन सुनाए ही आपबीती,

कहां से सीखी थी तुमने?

इश्क़ की ये गुरिल्ला नीति,


गर उम्मीद कोई होती,

तो आगाज़ का पटका फहरता,

तू चाहती तो मैं भी,

तुझे ताउम्र प्यार करता।


– ऋषभ भट्ट (किताब ; कसमें भी दूं तो क्या तुझे?)

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