गोद में सिर रखके तेरी



आ गई तूं दिल में क्या बातें मेरी सुन?

गा रहा था बहरें तुझपे, अल–फ़ाइलातुन,

होश में दिल आया,

जब तूने गले लगाया,

दर्द दिलों का यारा कह तुझसे रोना था,

गोद में सिर रखके तेरी, मुझको सोना था।


नाम तड़कती थी दिल में, धक–धक जैसे बिजली,

चाहत के बंजर टीलों में, तूं ख्वाहिश आ पिघली,

मैंने मीरा बनके गाया,

हो दरगाहों में कुन–फ़ाया,

चांद चमक में जितनी ठहरी, उतना ही तेरा होना था,

गोद में सिर रखके तेरी, मुझको सोना था।


सूत नहीं थी कोई जिससे तुझे बताता,

रूहों से नजदीकी तुमसे नाप वहीं दिखलाता,

आंखों को सबसे भाया,

वो नूर नज़र तूं आया,

पन्नों की उजड़ी खेतों में, किस्सों का याद सजोंना था,

गोद में सिर रखके तेरी, मुझको सोना था।


– ऋषभ भट्ट (किताब ; कसमें भी दूं तो क्या तुझे?)

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