मेरे दिल के संदूकों में, पैग़ाम पुराना है,
चुपचुपके रुकसत लेने वाले, तुम्हें लौट कभी तो आना है...
फूल शहर में एक नहीं, हैं लाख महक नज़राने में,
दोष नहीं हरगिज़ तेरा, मेरी ताल बिगड़ती है गाने में,
तूं सरगम है ख़्वाबों का, मैं भटका बंजारा हूं,
लिख लिखकर ले लो जाना, हर सांस तुम्हारा हूं,
तारों की जगमग रातों से एक धूप उठाना है,
तुम पंक्षी धीरे से आ बैठो वो शाख लगाना है,
मेरे दिल के संदूकों में, पैग़ाम पुराना है,
चुपचुपके रुकसत लेने वाले, तुम्हें लौट कभी तो आना है...
बाजू को सीने से लगा बाहों में भारती हैं,
हवा के जैसी सांसे मुझमें महबूब उतरती हैं,
देख जरा लो पल भर मैं आज संवरना सीख गया,
तेरे आने से तरसा वो आंखों का चहेरा भीग गया,
गिरने से पहले मोती के धागों में गांठ लगाना है,
तेरी चाहत में मुझको हंसना, रोना या मर जाना है,
मेरे दिल के संदूकों में, पैग़ाम पुराना है,
चुपचुपके रुकसत लेने वाले, तुम्हें लौट कभी तो आना है...
राहत भी धराशाई होती है, चाहत भी चुराए जाते हैं,
पतझड़ के आने से, सावन के चहेते पत्ते मुरझाते हैं,
तेरे चाल बदलने से जाना, हर मंज़िल नाता तोड़ गया,
पानी से तराशे थें नूर तुझे, प्यासा ही मुझे तूं छोड़ गया,
ढूंढ सकूं फुरसत से, कागज़ पे पता बतलाना है,
मेरी याद सजोए है तुझको, इन्हें यार नज़र कर जाना है,
मेरे दिल के संदूकों में, पैग़ाम पुराना है,
चुपचुपके रुकसत लेने वाले, तुम्हें लौट कभी तो आना है...
– ऋषभ भट्ट (किताब ; कसमें भी दूं तो क्या तुझे?)