उलझन की नदियों में भटका जग,
तू संगम की शीतल पानी,
तेरा मोल अधिक है सांसों से,
ओ ब्रजरानी! ओ ब्रजरानी!
सांसों का धन तुझको देके,
जीवन का मोल चुकाना है,
सातों तीरथ तेरे अन्दर,
मुझे और कहीं न जाना है,
हंस–हंसिनी के जोड़े में,
तू श्रृंगार संयोग की अमर निशानी,
छवि अंखियों ने रोज निहारें,
अद्भुत, श्रृंगार रागिनी ब्रजरानी!
तेरा मोल अधिक है सांसों से,
ओ ब्रजरानी! ओ ब्रजरानी!
नियति के पत्थर हर,
फूलों से खिल जाएंगे,
मन के अंधेरे में जो,
राधे नाम के दीप जलाएंगे,
विख्यात जगत में प्रेम मधुर,
पर तुमसे पहले थी एक न जानी,
किशन कन्हैया रासरचैया संग झूमे,
ब्रजभानु किशोरी राधिका रानी!
तेरा मोल अधिक है सांसों से,
ओ ब्रजरानी! ओ ब्रजरानी!
- ऋषभ भट्ट