ऐ मेरे दिल के रदीफ़
मेरी मुस्कराहटें उदासी में खो गई हैं,
इक लहक आई थी उनके मिलने से मुझे,
मगर जुबां की हर लफ़्ज़
अब सियाह रातों में खो गई है,
सहर सा था कुछ उनकी अल्फाजों में,
निकलती हुई हर गीत सुकून दे जाती थी,
अदाओं को छूके उसकी, मेरी नज़्म
गलियों गलियों में तराने गाती थी,
उन तरानों में मायूसी के सिवाए
अब कुछ भी नहीं है,
पहले गलतियों से सीख लेते थे हम,
अब तो जो ग़लत है, वो भी सही है
ऐसा क्या रम्ज़ था उनमें
कि भूल नहीं पाता हूं,
इश्क़ फिर भी हुए कई ईशां से,
मगर उस चेहरे पर आज भी खो जाता हूं।
- Rishabh Bhatt