वासुदेव श्री कृष्ण ( Holi Special )

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धरती पर तुम विद्यमान हो, जानता हूं

सृष्टि के रचयिता तुमको उत्पत्ति का कारण मानता हूं,

धर्म के अम्बर में पीत पट वाले,

स्वेत छवि के श्यामल तन निराले,

रसिया बने गोकुल की गलियों में,

तुम्हीं हो हर वाटिका की कलियों में,

हजारों स्वरूप का एक अंग हो तुम,

जैसे रंगों का मिश्रण स्वेत रंग हो तुम,

संध्या में दिनकर की लालिमा गगन में,

जो ऊषा सिन्दूर सी चढ़ती सुमन में,

मां यशोदा को मुख में ब्रह्माण्ड दिखाया,

तीनों लोकों के स्वामी ने माखन चुराया,

जल सा निष्छल स्वरूप अनादि,

चढ़ते अंग-अंग पर तुम आदि-आदि,

सम सागर के नेत्र नील,

सर-सर-सर-सर मादक अनील,

मैं तन-मन ले रंग जाऊं तुममें,

हे सौन्दर्य तेज बस जाऊं तुममें,

हो ! प्रभात रंगबिरंगा युग-युग तक, नरपति

स्वेत-श्याम को भेद सकूं दो मुझको ऐसी गति।

- Rishabh Bhatt

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