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मैं दुनिया से उड़ चलूं
इक पंक्षी बनके गगन की ओर
मेरे पंखों को हे प्रभु !
तुम आकाश की उड़ान देना
मेरा भूत बर्फ के समान पानी है
और भविष्य भी पानी ही है
तो मैं किस बात की गर्मी करूं
हे प्रभु ! मुझे अपनी शरण में ले लो...
मैं हंसता, बिलखता तुम्हारा गुण गाउं
तेरे चरणों में समाऊं
इस जहां की कठोरता में
मेरे कदमों को तेरी कोमलता मिली है
आंशू की धार जब-जब आंखों से निकाली है
तब-तब तुमने मुझे सम्भाला है
समन्दर में ठहरी जर्जर नाव को
प्रेम की धाराओं ने तट तक निकाला है
हे प्रभु ! मैं जानता हूं
यह तुम्हारी ही कृपा है
जैसे एक पिता अपने पुत्र का साया बना
हर संकट में पास होता है
वैसे ही तुमने कभी मुझे
खुद से अलग नहीं होने दिया
मिट्टी से जन्में इस क्षणिक शरीर को
अंत में तुम तक ही जाना है
लाखों यौनियों के इस चक्र को
सिर्फ तुम ही समाप्त कर सकते हो
यह दृष्टि नासमझ है...
जो जीवों में भेद देखती है
इस सृष्टि का कण-कण तुमने बनाया है
इसलिए संसार के इस जीवन-मरण रूपी
माया का अंत करो !
हे प्रभु ! मुझे अपनी शरण में ले लो।
- Rishabh Bhatt