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ब्रह्माण्ड को अमृत पिलाकर जो स्वयं विष पी जाए
जिनके डमरू से संसार के कानों में संगीत की धुन छाए
जो ताण्डवी नृत्य करके भगवान नटराज बन जाए
वही कैलाश के निवासी.... वही नीलकंठ कहलाए।
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जहां ज्यामितीय परवलयाकार आकृति अनन्त को बताए
पदार्थ के मूल कण स्वयं एक लिंग में समाएं
दूध के अभिषेक में नाभिकीय ऊर्जा का बिम्ब छाए
वही शिव की सत्य रचना.... वही शिवलिंग कहलाए।
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जिनके धनु को तोड़कर सिया में राम समाएं
जिनके महिमा से एक पुरोहित लंकापति कहलाए
जो प्रेम के पन्नों में पार्वती के संग नजर आए
वही हृदय में विष्णु.... और जटा में गंगा बसाएं।
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जो संस्कृत की वर्णमाला को अपनी डमरू में बजाए
साधना की शक्ति में आदियोगी बन जाए
सिन्धु से मेसोपोटामिया की सभ्यता में नजर आए
वही उत्पत्ति का शून्य ... और अंत का अनन्त कहलाए।
जिनके डमरू से संसार के कानों में संगीत की धुन छाए
जो ताण्डवी नृत्य करके भगवान नटराज बन जाए
वही कैलाश के निवासी.... वही नीलकंठ कहलाए।
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जहां ज्यामितीय परवलयाकार आकृति अनन्त को बताए
पदार्थ के मूल कण स्वयं एक लिंग में समाएं
दूध के अभिषेक में नाभिकीय ऊर्जा का बिम्ब छाए
वही शिव की सत्य रचना.... वही शिवलिंग कहलाए।
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जिनके धनु को तोड़कर सिया में राम समाएं
जिनके महिमा से एक पुरोहित लंकापति कहलाए
जो प्रेम के पन्नों में पार्वती के संग नजर आए
वही हृदय में विष्णु.... और जटा में गंगा बसाएं।
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जो संस्कृत की वर्णमाला को अपनी डमरू में बजाए
साधना की शक्ति में आदियोगी बन जाए
सिन्धु से मेसोपोटामिया की सभ्यता में नजर आए
वही उत्पत्ति का शून्य ... और अंत का अनन्त कहलाए।
- Rishabh Bhatt