आंखों की पुतली से सपने बादल की देखा हूं,
धाराओं में बहता चलता जीवन की गतिमय रेखा हूं,
संघर्षों की पंखें पसार,
मुश्किल हालातों में कर हुंकार,
दीपक की जलती बाती में रात अंधेरी सोया हूं,
पाई पाई मेहनत से जीत की खेती बोया हूं।
हिम की करवट लेकर, अंगारों पर अंगड़ाई लेता हूं,
सपनों के चूम गहन को खुली आंख से सोता हूं,
हंसने वालों का क्या मजाल,
खेल की बाज़ी, अपनी चाल,
उम्मीदों की रश्मि पकड़ तारों को हर दिन खोया हूं,
पाई पाई मेहनत से जीत की खेती बोया हूं।
रेत का काम है गिरना, वक्त का कांटा चलता रहता है,
जल धाराओं के जैसे सांसों को प्रतिपल गहता है,
दो चार पहर की जीवन नैया,
कब तक रुकना टिकना है भैया?
हंसते खिलते चहेरे के पीछे सौ बार डूब कर रोया हूं,
पाई पाई मेहनत से जीत की खेती बोया हूं।
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion