महज़ इक शर्त थी तुम तोड़ देते बापू,
बंटवारे के इतिहास में मैं अबतक खोया हूं,
हजारों जुगनू की ख्वाहिश थी मेरी आंखों को,
अंधेरी रात को देकर ज़मीं में इक बीज बोया हूं,
हुकूमत छीन लूं उनसे चिराग़ों के जो गद्दार बैठे हैं,
बगावत ईमान की लेकर तेरी आंचल में सोया हूं,
कई जिन्ना मिले इतिहास में मुझको,
मगर इक ही शाम पे आंसू पिरोया हूं,
हवाओं का रुख बदलने दो वतन के वास्ते,
मैं सदियों पुराने मुल्क को दिल में संजोया हूं,
खैरियत के वास्ते सितम को झेलने वालों,
जली लाशें किसी इक क़ौम के हाथों उसी कश्मीर पे रोया हूं,
इमां को बेचकर वो ज़ालिम खुदा का नाम लेते हैं,
लहू में डूबकर जिनके मैं अपनी शाम धोया हूं,
महज़ इक शर्त थी तुम तोड़ देते बापू,
बंटवारे के इतिहास में मैं अबतक खोया हूं।
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion