महज़ इक शर्त थी तुम तोड़ देते बापू

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महज़ इक शर्त थी तुम तोड़ देते बापू

बंटवारे के इतिहास में मैं अबतक खोया हूं

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हजारों जुगनू की ख्वाहिश थी मेरी आंखों को

अंधेरी रात को देकर ज़मीं में इक बीज बोया हूं

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हुकूमत छीन लूं उनसे चिराग़ों के जो गद्दार बैठे हैं

बगावत ईमान की लेकर तेरी आंचल में सोया हूं

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कई जिन्ना मिले इतिहास में मुझको 

मगर इक ही शाम पे आंसू पिरोया हूं

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हवाओं का रुख बदलने दो वतन के वास्ते

मैं सदियों पुराने मुल्क को दिल में संजोया हूं

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खैरियत के वास्ते सितम को झेलने वालों

जली लाशें किसी इक क़ौम के हाथों उसी कश्मीर पे रोया हूं

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इमां को बेचकर वो ज़ालिम खुदा का नाम लेते हैं

लहू में डूबकर जिनके मैं अपनी शाम धोया हूं

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महज़ इक शर्त थी तुम तोड़ देते बापू

बंटवारे के इतिहास में मैं अबतक खोया हूं


 - Rishabh Bhatt

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