श्री सम्मेद शिखरजी

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 श्रद्धावान लभते ज्ञानं तत्परः संयतेद्रियः।

ज्ञानं लब्धवं परां शान्तिमचिरेणाधि गच्छति।।

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अर्थात् - वे जिनकी श्रद्धा अगाध है और 

जिन्होंने अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण कर लिया है 

वे दिव्य ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं,

इस दिव्य ज्ञान के द्वारा वे शीघ्र ही 

कभी न समाप्त होने वाले परम शांति को प्राप्त कर लेते हैं।

संस्कृत के 'जि' धातु से 'जिन' शब्द बना है

जिन अर्थात् 'जितने वाला'

जिन्होंने अपने तन,मन और वाणी को जीत लिया है और

विशिष्ट ज्ञान को प्राप्त कर लिया है, उन आप्त 

पुरुष को 'जिन' या 'जिनेन्द्र' कहा जाता है।

जिन द्वारा प्रवर्तित दर्शन का अनुसरण करने वालो

को ही 'जैन' कहा गया है।

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मनुस्मृति में जैन धर्म के प्रथम 'जिन'

यानी ऋषभदेव का वर्णन मिलता है

 

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भगवत पुराण के 5वें स्कंध के अनुसार -

'ऋषभदेव' मनु के वंशज राजा नाभि के पुत्र हैं

अर्हन् राजा के रूप में इनका विस्तृत वर्णन है।

श्र्वेतांबर व दिगंबर सम्प्रदायों में बंटे

जैन धर्म के 24 तीर्थंकर हुए, जिनमें

प्रथम ऋषभदेव और अंतिम महावीर स्वामी।

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जैसे ब्रह्माण्ड में अस्तित्वमान हर पिण्ड का एक केन्द्र है

पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव हो या उत्तरी ध्रुव

जिस घूर्णन अक्ष के सापेक्ष पृथ्वी घूर्णन करती है, और

जैसे सूर्य के चारों ओर ग्रहों की गति होती है

उसी प्रकार हर धर्म का एक केन्द्र होता है...

ईसाईयों के वेटिकन सिटी से लेकर इस्लामिक मक्का मदीना

और सिख समाज के स्वर्ण मंदिर की तरह ही

'श्री सम्मेद शिखरजी' जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल हैं

इस स्थान पर...

जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष प्राप्त किया।

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गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं -

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यस्तिन्द्रियाणि मनसा नियम्यार भतेऽर्जुनाः।

कर्मेन्द्रियः कर्मयोगमस्कतः स विशिष्यते।।

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अर्थात् - वे कर्मयोगी जो मन से अपने ज्ञानेंद्रियों को 

नियंत्रित करते हैं, और

कर्मेंद्रियों से बिना आसक्ति के कर्म में संलग्न रहते हैं

वो वास्तव में श्रेष्ठ हैं।

ऐसी ही श्रेष्ठता के उदाहरण जैन धर्म के सभी तीर्थंकर हैं

22वें तीर्थंकर 'अरिष्टनेमि' स्वयं श्री कृष्ण के चचेरे भाई हैं

23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के नाम पर

उस सिद्धक्षेत्र को पारसनाथ कहा गया है।

चारधाम, केदारनाथ की तरह देवों की यह स्मरणस्थली

मूलतः सनातन का ही अंश है, और 

श्री सम्मेद शिखरजी मानवता के हृदय में स्वयं विराजमान हैं।

 

'अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः'

 - Rishabh Bhatt


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