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बरसाने की गलियों में अंखियां तोहे ही तलाश रहीं,
शाम साथ में चांद ढली रंग नींद लिए हर सांस रही,
हाथों की लाली आज लिए रंगने को तुझसे तुझमें आई,
श्याम रंग में रगूं राधिका रंगे रास में फगुआई,
पर देर.... खबर न मोहन की
मैं पूछ उठी सखियन से कोई मेरे गिरिधर को जाने है,
श्यामल तन पे मोर मुकुट क्या नील नयन पहचाने है?
शायद....श्याम सताते तुम हो रंगों ने तुमको घेरा होगा,
मुझसे भूल कोई तो होगी जिससे मुख को फेरा होगा,
फिर भी....भूल जरा उन बातों को मेरे हिय की तान सुनो,
प्रेम रंग में रंगी राधिका मुरली की मधुबान सुनो,
देख चलो तुम आज सवारियां फाल्गुन के रंग लाई हूं,
प्रीत नयन में प्रेम रंग ले रंगने को मै आई हूं,
पायल भी चाहे झूमें संग तोहे गीत में,
सांवरिया....रंग दे तू मोहे प्रीत में।
- Rishabh Bhatt
nice poetry i like this
ReplyDeletemay your poetrys popular soon
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