This Poetry does not infer or claim historical authenticity or accuracy In terms of the names of the places, characters, sequence of events, locations, spoken languages, dance forms, costumes and/or such other details. We do not intend to disrespect, Impair or disparage the beliefs,feelings, sentiments of any person(s), community(ies) and their culture(s), custom (s), practice(s) and tradition(s).
तारक वो तिमिर निशा का चम-चम चमके प्रभा अमर,
बरस उठे सावन संग सुमन गगन से नित झर-झर,
रव गूंज उठे कानो में कल-कल किलकित गानों में,
जो ढूंढ चले यों नयन सुअन वो मिले न भव उपमानों में,
वो ज्योति सुमन उर में बसती करती उर में अनुपम लय,
अब होती है आरम्भ कथा कर नमो-नमो दुर्गे की जय।
रंगमंच सा दरबार सजा नाच रही साकी बाला,
हाला में हाला बहती दरबार बनी मधुशाला,
मधुमत्त हुए दरबारी हाथों में भर-भर प्याला,
अधरों से मधु बरस रहे क्षण छलक उठी छल-छल हाला,
सुंदरियों के लाल कपोलों को देख-देख छाई कुम्हलाई,
प्याली में मदिरा मदिरा में प्याली भारी सुघराई पर सुघराई,
अंगड़ाई में अंगड़ाई लेता पीता अधरो की लाली को,
कभी निकलता अल हज्जाज खरीफ पीने को मधुमय प्याली को,
उन्मादी मतवाला सा झूम उठे पायल की छुन-छुन छुन-छुन पर,
बहुरंगी तस्वीरों से दीवार सजे सजे युवतियों से सुन्दर,
फिर भी उर में कोलाहल छाये पूरब में भगवा लहराए,
सिन्धु सरित बाधक बन आए सिंधपति के जय-जय छाएं,
सोच रहा उर बहुत वितान पूरण कब होगा अरमान?
पल-पल बढ़ता जिसका उत्थान उस पर जाता मेरा ध्यान,
कैसी ये पूरब की शान? अम्बर सा बढ़ता उत्तान,
कैसी है वो स्वर्ण जहान? जिस पर रोम-रोम बलिदान,
कैसी है बलिहारी जय-जय? कैसी है अधिकारी संचय?
कैसी है गज? कैसी हय? कैसी जय उन पर दुर्जय?
कैसी है तीखी तलवार? शोणित की प्यासी खरधार,
शायक धनु से लक्ष्य उतार ले ले धाये कुन्तल कटार,
उत्सव नाच रहे नर नारी उत्तम रण कौशल अधिकारी,
रोर तड़ित में बदल जाए क्षण सिंधपति वो सौ पर भारी,
मीर सुनो तुम अब भी उर में रहती अंकुश वादी,
शायक सी चुभती पावक सी जलती भारत की आजादी,
वासर एक मिले चरणो में सिंधपति के म्यानो को,
छिन्न भिन्न मै कर जाऊं उस अचल राज अभिमानों को,
तभी मिले इस मन्द पवन को संबल बन विस्तार,
तभी मिले इस तृषित स्वास को रुधिर सरित व्यापार,
खेल रही नियति भी दे पासों को अरि हाथो में,
कष डोल उठी क्षण धर्मराज की लिखने को रण माथों पे,
कण-कण में भरकर हलचल विकल भानु जो ताप मिली,
सजल राज में राहु साया शिथिल शशि अभिशाप मिली,
बोल उठा पाठक ज्ञानी तब अस्थि करों का ताप कहो,
क्षण सिंधपति पर शाप कहो क्षण रणधीरों का प्रताप कहो,
An Author, Poet & Engineer — wandering through worlds of logic, language, and longing. I turn emotions into stories and moments into art. Through books like “Mera Pehla Junoon Ishq Aakhri”, “Kasmein Bhi Du To Kya Tujhe”, “Unsaid Yet Felt”, “Incompleteness At Every Turn”and many more. I write of love, heartbreak, truth, and hope — where every line carries a soul. My works live on Pocket Novel, Amar Ujala Kavya, Amazon, Notion Press, Pothi.com and more. Founder of RishNova, I believe every untold story holds the power to heal, connect, and stay — forever.