सिंधपति दाहिर ; स्मृति-1

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8वीं सदी के भारत वर्ष में सिंध के अंतिम हिन्दू राजा ब्राह्मण वंश के "राजा दाहिर सेन" जिन्होंने अरबों से लड़ते हुए अपने राष्ट्र के लिए अपनी प्राणों की आहुति दे दी,उनके जीवन पर आधारित यह एक काल्पनिक काव्य श्रृंखला है।

इस काव्य श्रृंखला का प्रारंभ एक पाठक तथा एक पुस्तक के माध्य होने वाले वार्तालाप से होता है तथा पहले स्मृति में उनके वार्तालाप को प्रस्तुत किया गया है।

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कोयल की मधुवर्षी सर्वर से कहां सुबह बरसात हुई?
जग जिससे चमक रहा क्या जुगुनू से जगमग रात हुई?

क्या बरस रहा सावन घन अमृत के बूंदों में?
जग हलचल जैसे दूर चला मैं जाग रहा हूं नींदों में,

अब जाग उठो हे ज्ञानश्रेष्ठ मौन लिए क्यों सोते हो?
मुझ बंजर की खेती में प्रश्नो के बीजों को क्यों बोते हो?

क्षण लगता रण तुममें क्षण मानवता का इतिहास मिले,
हित अवनी के वीरों की बलिदानों का आभास मिले,

कभी प्रेम की गंगा बहती कभी लहू की धार बहे,
अज्ञात सरित की व्यथा कहो जो पल-पल लहूलुहान बहे,

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इन राख हुए पन्नो के ज्वाला की तुम आग कहो,
शोणित के छींटों से लतपत पन्नों की तुम राग कहो,

परिचय दो उस महा समर का जिसके तुम अधिकारी हो,
राज कहां क्या काज तुम्हारा तुम किस युग के अवतारी हो?

तब रुक-रुककर उस पोथी की हर पंक्ति जैसे डोल उठी,
वो वीर करुण‌ रस संचित कर मुख को अपने खोल उठी,

करतल में सज्जित तलवारें म्यानों से हो दूर चलीं,
गहन निशा को चीर गगन में प्राणों की वो दीप जली,

नारी की मर्यादा ने जौहर व्रत का श्रृंगार किया,
क्षण नील‌ निलय में लाली बन शोणित ने जैसे आधार लिया,

मैं उस रण को धारण करती जिसने बलिदानों को देखे हैं,
मुझमें मानवता पर काली बन अरि उत्पीड़न के लेखें हैं,

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सुधि मेरी उस सूदूर की है जिसका रण आभास हुआ,
संघर्ष हुई मैं पोथी अब तो खंडित मेरा स्वास हुआ,

मुझमें जन क्रंदन संग वीरों का वंदन होगा,
सुन-सुनकर करुण कथा यह विकल तुम्हारा मन होगा,

क्षण व्याकुल हो श्रोता बोला अविरल रण व्याख्यान कहो,
सजल राष्ट्र में आगम अरि का जन-जन का बलिदान कहो,

शौर्य कहो उन राजा की उन पर अरि व्याधान कहो,
हे ज्ञानश्रेष्ठ विस्तार रूप में संगर का आख्यान कहो,

अब देर करो न ज्ञानी तुम मन जीवनमरू में प्यासी है,
रसपान करू अज्ञेय कथा अब विकल सांस अभिलाषी है।  

 
- Rishabh Bhatt
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