समय की अंगड़ाई के साथ
जीवन ने जब पनपना शुरू किया,
तभी चलीं
वेदों की ऋचाएं…
चलें मिलन को
राम-सिया,
मुरली वाले की मुरली ने
गीता का मधु दान किया।
एक हाथ ने बुद्ध दिए,
महावीर दिए…
दूजे ने तलवार लिया।
फिर तो…
ये दौर कहाँ रुकने वाला था????
एक पुत्र ने अपनी शिखाओं को खोल…
अखण्ड स्वास को खोल दिया।
एक ने
विश्व विजेता के आगे
अपने तलवारों से बोल दिया।
फिर कभी उस स्तम्भ की यादें,
जिस पर सत्यमेव जयते ने श्रृंगार किया।
तो कभी उस स्वर्णिम युग की यादें,
जिसने विश्व को
ज्ञान का आधार दिया।
फिर भी…
समय चलता रहा…
कुछ लुटेरों की लालसाओं ने
अपने क्रूरता से बरसात किया,
कभी पुस्तकें आग में जलीं,
तो कभी तलवारों ने आघात किया।
पर समय के साथ परिवर्तन होता रहा,
और समय ने
हिन्दुस्तान दिया।
हम वसुधैव कुटुंबकम् के धारक,
हमने सबका सम्मान किया।
फिर…
राहें अपनी राह बनाती रहीं…
और सात समंदर पार कर
गोरों ने हमसे शुरू व्यापार किया।
हम अतिथि देवो भव: गाते रहें,
उन्होंने
बन्दूकों को तान लिया।
फिर रानी की
मर्दानी संग,
वीरों की टोली ने शुरू एक
संग्राम किया।
लाठी ऐनक वाले के राही…
चलें जिन्होंने…
हिन्द फौज और इंकलाब का नाम दिया।
फिर…
तीन रंग से मिश्रित
ध्वज लहराया,
एक राग में सबने जन-गण-मन को गाया।
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion