रात और सांस

रात और सांस — भावनात्मक कविता

हूं लिख रहा जिन दौर को,
उनसे बड़ा अंजान हूं,
पर प्रश्न कुछ हैं पल रहे,
जिनसे बना नादान हूं,

कुछ पंक्तियां मेरी समझ से दूर हैं,
हूं सोचता! पी लूं इन्हे भर सांस में,
पर सांस भी हर आस से मजबूर है,

मजबूर से कुछ सांस हैं,
जिनमें सुबह की आस है,
ये रात प्यारी कहां?
मुझको जरा सी प्यास है,

फिर भी डुबाती बात ये,
जिनसे लिखे कुछ आज हैं,
पन्ने बदलती रात ये
कितने बदल दी राज है,

हंसती सुबह में शाम कर,
जगमग लिखें कुछ नाम हैं,
है चांद भी रौशन कहां?
हर पल यहां बस शाम है,

बस सोचता पी लूं जरा,
उन रात के कुछ बात को,
स्याही बहे कुछ नाम पर,
ले सांस में कुछ रात को।

✒️ Written by Rishabh Bhatt

विस्तृत व्याख्या 

दौर और प्रश्न:

कवि अपने वर्तमान दौर को समझने की कोशिश करता है और अपने आप को उन अनुभवों से बड़ा अंजान पाता है। जीवन के कुछ प्रश्न उसे नादान बनाते हैं, जो अभी तक उसके लिए स्पष्ट नहीं हैं।

पंक्तियों और सांस का संघर्ष:

कुछ पंक्तियां उसकी समझ से दूर हैं और कवि उन्हें अपने भीतर समेटने की इच्छा रखता है। परंतु सांस भी हर उम्मीद और आस से बाध्य है, जो जीवन में मजबूरी का अनुभव कराती है।

सुबह की आशा और रात की प्यास:

कुछ सांसें सुबह की आशा लिए हैं, पर कवि रात की प्यास महसूस करता है। बातें उसे डुबाती हैं, फिर भी लिखने की प्रेरणा और आवश्यकता बनी रहती है।

समय और पन्नों का प्रवाह:

रात पन्नों को बदलती है और जीवन की परिस्थितियाँ अपने राज खोलती हैं। सुबह और शाम के बदलाव, हँसी और लिखावट, सब मिलकर जीवन के रंग और कहानी दर्शाते हैं।

अंत और आत्मनिरीक्षण:

हर पल यहाँ बस शाम है, पर कवि कुछ पल पीकर अनुभव करना चाहता है। रात की बातें, स्याही और सांस में समेटी रात, कवि की आत्मनिरीक्षण और भावनाओं का प्रतीक हैं।

संपूर्ण सार (संक्षेप में)

यह कविता जीवन के संघर्ष, रात और सुबह, सवाल और आशाओं को व्यक्त करती है। कवि अपने अनुभवों, पंक्तियों और सांस के माध्यम से जीवन की उलझनों और भावनाओं को समेटता है। कविता बताती है कि हर परिस्थिति और समय के बीच आशा, आत्मनिरीक्षण और संवेदनाएँ बनी रहती हैं।

💡 भावनाओं और आत्मनिरीक्षण से जीवन के हर अंधकार को समझा और अनुभव किया जा सकता है।

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