Neelkanth Ki Dharati Par 🙇🏻‍♂️ – Rishabh Bhatt | Divya Bhakti Sangrah

A poetic glimpse into emotions, silence and forgotten memories. Perfectly capturing the essence of Rishabh Bhatt’s soulful poetry series “Yadon Ki Khidkiyo Se”. 🌙🖋️

दिव्य भक्ति संग्रह : Shree Swaminarayan Special

Middle Background

नीलकंठ की धरती पर 🙇🏻
दिल्ली की धूप में निखरती हुई इमारतें, इतिहास के पन्नों से झाँकता लाल किला 🏰, क़ुतुब मीनार की ऊँचाई में जैसे बीते युगों की गूंज, और इंडिया गेट के नीचे मौन खड़ी शहादत की महक 🇮🇳— मैं चलता रहा, हर पत्थर में, हर छाया में, अपने देश का चेहरा ढूँढता हुआ। पर वो शांति कहीं थी नहीं… भीड़ के बीच भी एक अधूरापन था, जैसे आत्मा कुछ खोज रही हो — न बाज़ारों में मिली, न रास्तों के शोर में। फिर वो 3 अप्रैल आया, जब कदम खुद-ब-खुद मुड़ गए अक्षरधाम की ओर 🛕। जैसे कोई अदृश्य पुकार कह रही हो — “चलो, अब मिलते हैं अपने आप से।” वो संगमरमर की सीढ़ियाँ… वो शांत जलाशय… 💧 हर ओर भक्ति की वो ध्वनि, जो शब्द नहीं थी, पर सुनाई दे रही थी — मन ठहर गया। वहाँ मैंने पहली बार ‘सुकून’ को देखा, न किसी चेहरे पर, न किसी किताब में, बस अपने अन्दर, शांत बैठे हुए। ✨ फिर कल... (21 Oct) जैसे किसी अधूरी अनुभूति को पूर्ण करने का समय आया, मैं पहुँचा छप्पिया — वो पवित्र भूमि, जहाँ स्वयं भगवान नीलकंठ ने अवतार लिया था 🙏। अजीब बात यह थी कि मेरा घर छप्पिया से पचास किलोमीटर से भी कम दूरी पर है, फिर भी मैं कभी वहाँ नहीं गया था। शायद समय को भी तय करना होता है कि कौन-सा मिलन कब होना है… पर जब इस बार पहुँचा, तो लगा जैसे मैं कहीं गया ही नहीं — बस लौट आया हूँ वहाँ, जहाँ मैं हमेशा से था। 💫 वहाँ की हवा अलग थी, वो सिर्फ़ बह नहीं रही थी, जैसे हर झोंका कह रहा हो — “यहाँ सब कुछ शुद्ध है।” 🌬️ मंदिर के अंदर जब मैं आगे बढ़ा, तो देखा — वहाँ मिट्टी से बने घर थे, वो ही सादे, देसी घर जिन्हें देखकर लगता था मानो समय रुक गया हो। एक कोने में बँधी चारपाई, जिस पर बुनावट की पुरानी खुशबू अब भी थी। दीवारों के पास मिट्टी के खिलौने रखे थे — घोड़े, बर्तन, छोटे घर — 🐎🏡 जिन्हें देख लगा जैसे बचपन खुद वहाँ खेलता रहा हो। घरों में रखी वो पुरानी वस्तुएँ, मिट्टी के दीये, लकड़ी के हल, रस्सी से बुनी डलिया — सब जैसे किसी कथा के जीवित पात्र हों, जो आज भी भगवान नीलकंठ के पदचिह्नों की रक्षा कर रहे हों। मैं झुका, मिट्टी उठाई, वो कोई साधारण धूल नहीं थी, वो आस्था की गंध थी — 🌸 जिसमें इतिहास भी सोया था और ईश्वर भी जाग रहे थे। वो क्षण… जब लगा, मैं धरती को नहीं, स्वयं को छू रहा हूँ। हर कण में एक असीम शक्ति थी, जो शब्दों से नहीं, अनुभूति से बोलती थी। अक्षरधाम ने शांति दी थी, पर छप्पिया ने श्रद्धा दी। एक ने मन को शांत किया, दूसरे ने आत्मा को झुकाया। और मैं सोचता रहा — शायद यात्रा का अर्थ यही होता है, चलते-चलते जब एक दिन हमारे अंदर का शोर थम जाए, और हम सुन सकें — वो जो सदियों से गूँज रहे हैं, वो जो कभी मिट्टी में थे, कभी मंदिर में, कभी बस हमारे अंदर… “ईश्वर।” 🕊️ 🌿 Written by Rishabh Bhatt 🌿 ✒️ Poet in Hindi | English | Urdu 💼 Engineer by profession, Author by passion
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Rishabh Bhatt
Poet, Author & Engineer Words are my way of turning silence into emotions. Author of 9 published books in Hindi, English & Urdu – from love and heartbreak to history and hope. My works include Mera Pahla Junu Ishq Aakhri, Unsaid Yet Felt & Sindhpati Dahir 712 AD. 💫 Writing is not just passion, it’s the rhythm of my soul. 📚 Read my stories, and maybe you’ll find a part of yourself in them.

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