श्रद्धा की गगरी में भक्ति बूंद उतर जाने दे,
माथे से मुझको अपनी, मईया चरण लगाने दे।
मैंने फूल चुने बेरंग जभी लाली तूने बिखेरा है,
तेरी चुनार में रहने को मईया मुख जग से मैंने फेरा है,
भोग लगाकर मिश्री की भर–भरके पाई थाली है,
वो नैना क्या चांद निहारे जिसकी तूं उजियाली है,
मां तारों की मोती बुन, माला गले चढ़ाने दे,
माथे से मुझको अपनी, मईया चरण लगाने दे।
दूर हुए हैं लाख दिलासे दिल ने तुझको पाया है,
तेरे प्रश्नों पे चलकर मईया मैंने खुद को आजमाया है,
जीत मिली है उन राहों पर जिनपे ठोकर खाई है,
उम्मीदों के ढलते सूरज की जब भोर लिए मेरी माई हैं,
तेरी ममता के मेवे से हर बिगड़े स्वाद मिटाने दे,
माथे से मुझको अपनी, मईया चरण लगाने दे।
कागज़ के कोरे पन्ने पर पहला नाम तुम्हारा है,
तूं हल बनके आई है जिस मुश्किल ने तुम्हें पुकारा है,
गंगा में डुबकी से जैसा मिट जाती मन की शेखी है,
चौखट की बंद दरवाजों पे मैंने रहें बनते देखी है,
तेरी कृपा के जुगनू से रौशन जग कर जाने दे,
माथे से मुझको अपनी, मईया चरण लगाने दे।
– ऋषभ भट्ट