ईगो में आकर
अगर मैंने तुमको कुछ कहा हो
तो उसके लिए मुझे माफ करना,
हम दोनों का सफर यहीं तक था
वक्त ने तय भी यही किया था।
भला कौन जीत सकता है लकीरों को
जिन्हें किस्मतों ने जन्म लेते दिया था,
मैंने हर वो कोशिश की
कि तुम्हें अपना बना लूं,
पर नाकामयाब हुआ हर बार
देखा तुमने भी अपनी आंखों से।
पन्ना पन्ना फट चुका हैं इस दिल का
लफ्ज़ होठों से आने के लिए है ही नहीं,
तुम मेरी चुप्पी को कमजोरी ना समझो,
मजबूरी की उड़ान में मेरे पास पर है ही नहीं।
बोला था न एक बार,
अगर मैं जीता
तो आसमान की सैर करने
तुम्हें अपने साथ ले चलूंगा,
वरना औरों की तरह तुम भी
मुझ नाकामयाब को
अपनी जिंदगी से निकाल देना।
मैं उड़ा तो था
पर कोई मंजिल न मिली,
तुम मुझसे रुखसत ले लो
अब बस तक़दीर के सहारे है
मेरी सारी गली।
जहां पे खुशियों के पेड़ हैं
तुम वहां अपना घोंसला बना लेना।
बस इश्क कमाने से कुछ होता नहीं
मैं आज जान गया हूं,
तुम किसी बड़े पैसे वाले के साथ
अपनी जिंदगी बिता लेना।
हां मेरा दिल आज
मेरे बस में नहीं है
जो मन में आएगा कुछ भी बोलूंगा।
अपनी कामयाबी को जैसे बताया था तुम्हें
तुम मेरे बाहों में चली आई थी,
आज अपनी बाहों से
तुम्हें दूर करने के लिए
नाकामयाबी के नकाब भी खोलूंगा।
नकाब पोसी तो इंसानियत का एक सच है
जो हर शख्स में मिलती है।
रातों का केवल चांद होता हैं
सूरज दिन में ही निकलती है।
जहां रोशनी मिले तुम वही जाओ,
मेरे तारों से यूं न अपनी प्यास बुझाओ।
इन अकेलेपन में ही
अब आगे रहना है मुझे,
तुम्हारे इश्क को कलम की बोलियों में
कहना है मुझे।
तुम अगली बार आओगी
तो रुखसत से रवाना मिलूंगा।
गलियों गलियों में तुम्हें गाता
मैं आवारा फिरूंगा।
- ऋषभ भट्ट ( क़िताब : मैं उसको ढूढूंगा अब कहां?)