ख़ून

Sad love poetry


खून,

एक वो जो लाल रंग का है और पूरे शरीर में बहता है,

दूसरा वो जो दिल के दर्द से 

पूरे शरीर को तड़पने के लिए मजबूर कर देता है,

चोट लगने पर भी एक दर्द होता है,

जिसमे खून ही निकलती है,

लेकिन जब दिल के दर्द कलेजे को फाड़कर

आंखों से निकलते हैं,

तो बेरंग आंसुओं में जख्मी कहानियां दिखाई देती हैं,

इन कहानियों से पूछना कभी, दर्द क्या होता है ?

जलन से निकले पांव के छाले ?

या आहों में तन–बदन को मरोड़ती किसी की याद ?

उनसे पूछना, तड़प क्या होती है ?

तकलीफ़ में जीना ?

या ज़िंदा लाश बन जाना ?

उम्मीदें क्या होती हैं ?

नाउम्मीदों में भी जीना ?

या एक उम्र मरते हुए गुजार देना ?

इन दर्द का कोई हिसाब नहीं,

चलते हुए वक्त में, 

ख़्वाबों का रुकना कोई रुकना नहीं,

लाल आसुओं का रंग,

कोई रंग नहीं,

रुके हुए ख़्वाब टूटे ही कहे जाएंगे,

बेरंग आंसुओं में फैले रंग,

बेरंग ही कहलाएंगे,

सच तो यही है दर्द और इश्क बेपनाह है,

जो मेरे सांसों के साथ मौत बनकर दफ़न हो जाएंगे।


- Rishabh Bhatt 

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