मैं हर हदों से लड़ लूं
सरहदों से लड़ लूं
दे दो इज़ाजत ज़रा सा मुझे
ज़ांनिए किस्मतों से लड़ लूं,
जब तक है ज़मीं! जब तक है आसमां
तू है मेरी मैं हूं तेरा,
चांद का दायरा है क्या ?
मैं हर सूरतों से लड़ लूं,
तुझको अपनी आदत बना लूं,
दिल के कागज़ पर तेरी सूरत बना लूं,
धागा खुद को बना
तुझको मैं अपनी मन्नत बना लूं,
खारे समंदर में मिश्री मिले
तुझको मैं ऐसी जन्नत बना लूं,
तूं मेरे दिल की लहक है कोई
तुमको मैं अपनी किस्मत बना लूं,
तुम्हारी फ़ितरत-ओ-निग़ाह में
खो जाए सुबह-ओ-शाम,
मेरी क़रवटों में आराम बनकर
तुम एक रात चली आओ,
चंद घड़ियों के लिए सुला
मेरी हर एक नींद को,
उम्र भर के लिए...
मेरे सोये हुए अरमानों को ज़गा जाओ।
- S. Rishabh Bhatt