शेष परिक्षा जीवन की अब भी हाथ तुम्हारे,
कल्पित उर के स्वप्न सभी हैं पल-पल साथ तुम्हारे,
शून्य-क्षितिज तक बाकी है कई निशानी जाने को,
मलयानिल के आंचल में पग पवित्र बिछाने को,
जगत पिता परमेश्वर, स्वयं सांध्य में शामिल,
बनकर दीप जलाने को, जगमग-जगमग झिलमिल,
समय शेष है मुठ्ठी में — धिक! आंखों का फेर नहीं है,
तुम देख रहे क्यूं थककर भाई! अब भी देर नहीं है।
हिम-गिरि से पिघल गई, नयन अश्रु कण ले ले कर,
नाव सरित में ठहरी किन्तु नई दिशा को देकर,
हृदय सजग कर भाई! — सूदूर गूंजती संगीत मधुर,
प्यास तुम्हारी वहीं बुझेगी, वहीं तृप्त होगा यह उर,
चैतन्य द्वार पर, बन क्षणिक स्वास का पहरेदार,
स्वयं खड़ा परमेश्वर करने जीवन का उद्धार,
उत्साह शेष है पग में — हा! कांटों का फेर नहीं है,
तुम देख रहे क्यूं थककर भाई! अब भी देर नहीं है।
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
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