मैं अकेला ही था पर चल रहा था

 

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इक अजनबी सा सफर जिन्दगी के हर कदम पर,

बस... चल रहा था,

थोड़ी तो तसल्ली थी कि मैं अकेला नहीं,

पर मंजर भी कहां मेरे संग कहीं था?

कुछ आगे बढ़ा तो तुम मिले

फिर भी फ़ुरसत नहीं कि बढ़ चलें हम आगे कहीं,

बस... कुछ बातें होती रहतीं 

और चलती लब्जों में यारी थोड़ी थोड़ी खोती रहती,

समय की रफ्तार में कब हमें दोस्ती का नाम मिल गया

कुछ पता ही नहीं चला,

मगर मुझे तालाश थी उन यारी की जिनकी समझ में मैं खुद को समझ सकूं,

रुक सकूं जिन्दगी में एक ठहराव बनकर जो बहते पानी सा

बस... चल रहा था,

मैं अकेला ही था पर चल रहा था।

एक दो कदम आगे बढ़ा तो

ममता की वो फिक्र जिनका जिक्र किताबों में मिल नहीं सकता

मुझे मम्मी के एक चमचे ने सिखाया,

और एक ने अपनी यारी के मोहब्बत में सपनों सा सजना सिखाया,

मुझे बिन किताबों के बहुत कुछ सीखने को मिल रहा था,

पर फिक्र इस बात की थी, कि 

हमारी यारी में किताबों का जिक्र नहीं था,

न सैर का ही था न सपाटों का

न हरदम की मुलाकातों का 

बस... कुछ बातों का और आने वाली कुछ रातों का,

फिर भी समय की तरह ही हम चलते रहें और

सब कुछ अच्छा बुरा ही सही 

बस... चल रहा था,

मैं अकेला ही था पर चल रहा था।

- Rishabh Bhatt

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