क्रोध है गति क्रोध ही गरज,
क्रोध की महक से तुम बाग ये निखार दो,
गुलसानों के स्वप्न में सामर्थ्य की छवि को
तुम कर्म कर उतार दो।
वो सूरमा है सूरमा क्या?
जिसकी ध्वनि में न सृष्टि का सार हो,
वो कर्म भी है व्यर्थ,
अनर्थता का जिससे बस विस्तार हो,
चेतना सही समय से जो पल सके,
नैन की नदी में खुद को तुम उतार लो,
क्रोध है गति क्रोध ही गरज,
क्रोध की महक से तुम बाग ये निखार दो।
क्रोध की उपज में, क्रोध ही पले प्रेम से,
प्रेम को भावना में क्रोध ही नकार दो,
हो बहाव कर्तव्य का, सत्य का प्रवाह हो,
कर्म ही से कर्म को ललकार दो,
बेड़ियां ही पांव की पंख सा उड़ान दें,
तुम आसमां में खुद को यूं बिखेर दो,
हवाओं को लपट में प्रकाश की गति को,
तुम प्रकाश ही से फेर दो,
प्रेम भाव पुष्प है तो धूप है ज्वालन,
सृष्टि के सत्य को इस तरह स्वीकार लो,
क्रोध है गति क्रोध ही गरज,
क्रोध की महक से तुम बाग ये निखार दो।
🌿 Written by
Rishabh Bhatt 🌿
✒️ Poet in Hindi | English | Urdu
💼 Engineer by profession, Author by passion