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रजनी के तारों की टिम-टिम ससिप्रभा की नीरवता को,
मनोभावों में बदल-बदल कर अलंकृत करता मानवता को,
जन भावों की ज्वाला पी-पी कर कुसुमों की माला को लेकर,
देख-देख उस अमर प्रभा को अधरों पर मधुभावों को भरकर,
छिप-छिप कर बूंदो-बूदो में घन भावों के बरसाता हूं,
संबल उर की दीपशिखा ले एक प्रभा बन जाता हूं।
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पर विहगों के अम्बर में उषा किरणों की उजियारी,
घट आर्दशों का गहन भरा भर स्वर्णिम युग के नव अधिकारी,
उर्मिल भावों के वक्ष शिखर पर करतल में कुसुमों को भरकर,
देख-देख अनुराग अमर वो तिमिर निशा में प्रभा प्रखर जो,
बन मानव प्रेमी धरणी पर मनोभावों के विभव लुटाता हूं,
संबल उर की दीपशिखा ले एक प्रभा बन जाता हूं।
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- Rishabh Bhatt