प्रथम दीप

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दिनकर की जल में परछाईं संध्या की लाली छाई,
निशा की ओर बढ़ा दिन नयनों में काली आई,
पर ये काया सूदूर चला जैसे प्रात: राजीव खिला,
खुशियों की रश्मि आई जब वो पहला दीप जला।
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क्रम ये आगे बढ़ता दीपों का संचय मिलता,
जुगनू सा जगमग जगमग सारा जग ये करता,
पर वैसा ना आभाव मिला परिवर्ती मन का भाव ढला,
खुशियों की रश्मि आई जब वो पहला दीप जला।
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उर ने यह जान लिया जलते दीपक से ज्ञान लिया,
जलकर जग रौशन करना दिनकर बनना ठान लिया,
दीपों से दीप जला नव पुर का द्वार खुला,
खुशियों की रश्मि आई जब वो पहला दीप जला।
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- Rishabh Bhatt

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