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बध गया हो जब स्वप्न में जीवन,
हो रहा हो जब भयभीत ये मन,
हो जब सात्त्विकता का अधर्म से मिलन,
हो रहा हो जब संघर्ष का निधन,
तब तू मेरा पथप्रदर्शक बन दिखाना,
हे कर्त्तव्य हर क्षण मुझे तू स्मरण आना।
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हो जहां सत्य का प्रतीक ये गगन,
गा रही हो जहां ये प्रकृति धर्म का भजन,
हो जहां कर्म ही सर्वश्रेष्ठता का धन,
हो रहा हो जहां बुद्धि का ज्ञान से लगन,
ऐसे ही पथ से तू मेरा मार्गदर्शन करना,
हे कर्त्तव्य हर क्षण मुझे तू स्मरण आना।
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हो जिनसे निर्मित नव युग का तन,
निकले जिनसे अंकुर बन नव-जीवन,
हो जिनसे दिप्ति सूर्य के आलोक सा मानव-पन,
जो निकले ज्ञान का, विज्ञान का, मानवता का प्रतीक बन,
ऐसे सतपुरूष से तू मेरा मार्गदर्शक बन मिलाना,
हे कर्त्तव्य हर क्षण मुझे तू स्मरण आना।
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- Rishabh Bhatt
Very very nice poem👍
ReplyDelete✌️✌️✌️✌️👌👌
ReplyDeletevery nice poetry
ReplyDeleteNice poem
ReplyDeleteRahul badhiya
ReplyDeleteBeautiful poem
ReplyDeleteBahut sundar rachna
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