बंधन मुक्ति


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कर जीवन परिणीत हो सर्वस्व त्याग युक्त,

राग द्वेश मित्र शत्रु मिथ्या जड़ बंधन से मुक्ति।

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चक्रव्यूह मोह का उत्पीड़न का है राज्य,

ज्ञान का व्याधान करे नीरवता भाज्य।

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गतिरोधक अनुभव रस का सम्मोहन कारी हाला जो,

नहि औषधि रोग की प्रेम शूल की माला वो।

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पावक है रूपसी प्रज्ञा का ये काल,

उत्कर्ष का अंकुश ये भ्रान्ति सम्मोहन जाल।

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सहचर एक विवेक बैरी सा ये विश्वानर,

बन अन्तर्पथ निर्देशक संसृति कारा स्वाहा कर।

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तज माया सर्व सत्य अंत उत्पत्ति का,

अमर आत्मा,बोध कर जीवनसुधा सम्पत्ति का।

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- Rishabh Bhatt

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