नवदीप

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गगन   मगन   हो   डोल  रहा,

खग   गुंजन   कर  बोल  रहा, 

पुष्प  कली  बिनु धूप  खिली,

कोयल  को  नव  गीत  मिली,

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जैसे नृत्य   समीर   करें,

ताल  मिलाता  नीर  बहे,

भौं  पुष्प  छोड़  निकल,

चौपायों में  भी  हलचल,

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बड़ी विकल हूई मत्सय कुमारी,

सुन्दर किसकी यह  किलकारी,

जिसका   करें    सभी   बखान,

कमल नयन मुख  चन्द्र  समान,

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खिली  मुस्कान   मयूरी    गला,

रंग उज्जवल जैसे कोई हंस मिला,

नव भुज तेज  दमक  रहा,

सूर्य किरण पा चमक रहा,

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हर्षित माही जो पग स्पर्श मिला,

पुष्प  खिला  नवदीप  जला,

तन शीतल जैसे मलय पवन,

नव  राग   उठा  स्वर ‌ नूतन।

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- Rishabh Bhatt

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