सूरज की फैली लाली सुबह सी,
तुझमें चमक वो राम से है,
उम्मीदों की ठहर मुझमें अभी,
हनुमत तेरे नाम से है।
बहकी–बहकी बातें न कर,
रोक है मैंने मन को मेरे,
माया के बादल सिर पर उमड़,
अंदर से जैसे दिल को घेरे,
तेरा छुआ पग, मुझको मिला जग,
डग–डग सम्हलता आराम से है,
उम्मीदों की ठहर मुझमें अभी,
हनुमत तेरे नाम से है।
नदियों की गति में तिनकों सी,
बह गई जब भावना मेरी,
तूने दिया फल हर पुण्य का मेरे,
जैसे चुकाता है कोई उधारी,
सौंपा तुझे तन, रख लो मेरा मन,
चिंता नहीं मुझको अंजाम से है,
उम्मीदों की ठहर मुझमें अभी,
हनुमत तेरे नाम से है।
फूलों को मिलती सहारा बसंती,
बागों का इस कोई माली तो है,
निर्बल भी होकर डरूं क्यूँ प्रभु मैं?
मुझ संग खड़ा तूं बलशाली तो है,
सुमिरन तेरा, अमृत रस से भरा,
इक बूंद का आशय भी सौ धाम से है,
उम्मीदों की ठहर मुझमें अभी,
हनुमत तेरे नाम से है।
सूरज की फैली लाली सुबह सी,
तुझमें चमक वो राम से है,
उम्मीदों की ठहर मुझमें अभी,
हनुमत तेरे नाम से है।
– ऋषभ भट्ट (@officialrishabhbhatt)