मेरे तो घर खिल गए,
अवध को राम मिल गए,
राम मिल गए,
राम मिल गए,
अवध को राम मिल गए,
मेरे तो घर खिल गए,
अवध को राम मिल गए...।
आंखों में पानी भर–भर के आई,
जैसे बारिश ने बूंदें बहाई,
हो! मेरा मन डोले गूंज सुन–सुन के,
नैना बिछाए फूल चुन–चुन के,
सदियों के बिखरे चमन खिल गए,
अवध को राम मिल गए,
राम मिल गए,
राम मिल गए,
अवध को राम मिल गए,
मेरे तो घर खिल गए,
अवध को राम मिल गए...।
चारों भईया संग आएं नज़र,
सीता मईया को गाएं हैं घर–घर,
जैसे दुल्हन कोई आज सज गई,
दीपों से जगमग अवध बन गई,
बिछड़े कई दिल सिल गए,
अवध को राम मिल गए,
राम मिल गए,
राम मिल गए,
अवध को राम मिल गए,
मेरे तो घर खिल गए,
अवध को राम मिल गए...।
पाई दर्श में लाखों मोती की लड़ी,
हटती नहीं अंखियां उनपे गड़ीं,
भर लूं बटुए में दिल के, ये घणी,
माटी का कण–कण जिनपे चरणें पड़ीं,
पांवों तले ज़मीं हिल गए,
अवध को राम मिल गए,
राम मिल गए,
राम मिल गए,
अवध को राम मिल गए,
मेरे तो घर खिल गए,
अवध को राम मिल गए...।
– Rishabh Bhatt (किताब : देव वंदना)
✨🪔शुभ दीपावली 🎇🙏🏻