सांवरे सुन लो जरा

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आंखें  मेरी   बरसा  करें सावन  सदा है छाई यहां,

भीगी पलकें मैं भी भीगी बहती चली मैं आई  यहां,

जग  ये  तेरी  न  है   मेरी मेरी  जग   मूरत  में  तेरी,

डूबे  मन  की  डूबी   बूंदें खीच मुझको  लाईं  यहां। 

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सागर ये  गहरी  प्रेम  की डूबी चली मै  जाऊं  यहां,

लहरें बना  तेरे  नाम  की हर पल मै गीत गाऊं यहां,

मेरी  मन   राग   सुन  लो मुरली को इक और धुन दो,

गहरे  रंग   की  गहराई  में रंगती चली  मै  जाऊं  यहां।

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भूली खुद को जग ये भूली जाने   कैसे   खोई   यहां,

प्रियसि तेरी  मै चली अब और  न  मेरा  कोई  यहां,

सांवरे की सूरत ये सांवरी हो के मै फिरती हूं बावरी,

ढूंढती   मेरे   श्याम   को वर्षो सी हर पल रोई यहां।

- Rishabh Bhatt
 

   
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