मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम

 

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 तेज धर्म मूर्ति के आभा अर्क समान, 

मर्यादित पुरुषार्थ से है त्रिलोक ये प्रकाशमान,

न समान पंचतत्व में कोई रघुवर सा नाम,

सृष्टि के सृजनकर्ता, जय रघुनंदन श्री राम।

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ये मन भर हर्ष से खिले रजनी में आश मिले,

जीवन को मूल मिले जो कौशल्यानंदन के चरणों की धूल मिले,

शरणों में ये तन करता  रहे  वन्दन,

जय रघुपति राघव दशरथनन्दन।

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हैं गुण ज्ञान कोश मन भावन पावन चरित्र,

धर्म,कर्म के स्तम्भ करें गुणगान गंगा पवित्र,

गुणगान करें सुर,नर, मुनि, जन

भजता रहे ये मन जय रघुकुल भूषण राजीव नयन।

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चला जा रहा सुन जिस गाथा को अविरल,

अज्ञेय बसा क्या उसमें जो नव्य लगे हर पल,

आदर्श भरे जीवन में दे जीवन को संबल,

निर्मल करता तन,मन जय सियापति रघुनंदन।

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- Rishabh Bhatt
 
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