सफल हो इस भूतल पर मेरा कर्मयोग

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समर्पण लो मुझसे सेवा का सार

कर दो मुझमें आत्मज्ञान का विस्तार

शून्य क्षितिज से आती विखलाती प्रतिध्वनि मेरी

स्मृतियों की छाया में मन की अलसाई फेरी

शक्ति के विद्युत्कण व्यस्त विकल बिखरे

ईश करूणा दो ! समन्वय, प्रेम निखरे

मानवता की कीर्ति में दे चैतन्य भोग

सफल हो इस भूतल पर मेरा कर्मयोग।

मैं गीत विहग, मेरा पग-पग संगीत भरा

नयनों के दीप्ति-चमक से स्वप्न पराग झरा

मैं क्षितिज भृकुटी पर चढ़ जाऊं

आगम-जग को नव पथ दिखलाऊं

जग समझता जिसे अभिशाप, वरदान हो

ईश ! इस नव ज्योति में अंकुरित नव ज्ञान हो

मानवता के हृदय में दे मधुर भोग

सफल हो इस भूतल पर मेरा कर्मयोग।


- S. Rishabh Bhatt

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