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रेत की घड़ियां गिनें भर मुठ्ठीयों में
नासमझ मुझको उड़ाए जा रही,
ये चंदन की चिता मेरे इक सांस को
वर्षों गंवाए जा रही।
घट रही पल पल हृदय की प्रीत प्यारी
इस लहर में,
गुनगुनाती गीत नदियां चमचमाती चांदनी
ढलती कहीं अपने शहर में,
कब्र में बाहें लिए मेरी दशा मेरी व्यथा
मेरी लगन में लाज में,
कुछ रुनझुनाती घुंघरुओं में छिप गई शामें मेरी
मेरी दफन आवाज में,
राख सी इन अस्थियों में पल रही
कोहरा बनी मेरे लिए क्यों?
मैं प्रीत हूं तेरा प्रिये
तूं जल रही मेरे लिए क्यों?
तुझसे लगन लागी मगन हो के कदम
यूं चल पड़ा,
तूं ढूंढती वर्षों मुझे मैं मौत के साये में खड़ा,
ये सनसनाती लूं लपट मेरे चिता की भस्म में
मेरे लगन की रात है,
मैं बंध रहा हूं प्रीत में फिर प्रेम की अगली कड़ी
अगले जनम बारात है,
तूं कर विदा ओ नासमझ
से कब तलक नैना बहाएं जा रही,
ये चंदन की चिता मेरे इक सांस को
वर्षों गंवाए जा रही।
- Rishabh Bhatt